Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 305
________________ २८८ नन्दी सूत्र प्रश्न - वह अचित्त कुप्रावचनिक द्रव्य अनुज्ञा क्या है? उत्तर - जैसे मान लो कोई कुप्रावचनिक आचार्य, उपाध्याय, किसी को, किसी कारण से सन्तुष्ट होकर आसन, शयन, छत्र, चामर, पट, मुकुट, हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, दूष्य, मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न आदि धन की सारभूत वस्तुओं की अनुज्ञा देते हैं अर्थात् पारितोषिक के रूप में देते हैं या पूर्व की याचना पूर्ण करते हैं, तो वह अचित्त कुप्रावचनिक द्रव्य अनुज्ञा हैं। से किं तं मीसिया कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा? मीसिया कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा-से जहाणामए आयरिए इ वा, उवज्झाए इ वा, कस्सइ कम्मि कारणम्मि तुढे समाणे हत्थिं वा मुह-भंडग-मंडियं, आसं वा घासगचामर मंडियं, सकडयं दासं दासिं वा सव्वालंकार विभूसियं अणुजाणिज्जा। से त्तं मीसिया कुप्पावरणिया दव्वाणुण्णा। से त्तं कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा। प्रश्न - वह मिश्र कुप्रावचनिक द्रव्य अनुज्ञा क्या है ? उत्तर - जैसे मान लो कोई अन्यमत के आचार्य, उपाध्याय, किसी को किसी कारण से सन्तुष्ट होकर मुख आदि के सर्व आभरणों से मण्डित हाथी या चामर आदि सर्व आभरणों से मण्डित अश्व या सर्व अलंकारों से विभूषित दास या दासी की अनुज्ञा देते हैं, वह मिश्र कुप्रावचनिक द्रव्य अनुज्ञा है। यह कुप्रावचनिक द्रव्य अनुज्ञा है। से किं तं लोगुत्तरिया दव्वाणुण्णा? लोगुत्तरिया दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - १ सचित्ता २ अचित्ता ३ मीसिया। - प्रश्न - वह लोकोत्तर द्रव्य अनुज्ञा क्या है ? .. उत्तर - जो लोकोत्तर (जैनमत के) देव गुरु, द्रव्य विषयक अनुज्ञा देते हैं, वह 'लोकोत्तर द्रव्य अनुज्ञा' है। लोकोत्तर द्रव्य अनुज्ञा के तीन भेद हैं - १. सचित्त २. अचित्त और ३. मिश्र। से किं तं सचित्ता लोगुत्तरिया दव्वाणुण्णा? सचित्ता लोगुत्तरिया दव्वाणुण्णासे जहाणामए आयरिए इ वा, उवज्झाए इ वा, पवत्तए इ वा, थेरे इ वा, गणी इ वा, गणहरे इ वा, गणावच्छेयए इ वा, सीसस्स वा, सिस्सणीए इ वा, कम्मि कारणम्मि तुढे समाणे सीसं वा सिस्सणियं वा, अणुजाणिज्जा। से त्तं सचित्ता लोगुत्तरिया दव्वाणुण्णा। - प्रश्न - वह सचित्त लोकोत्तर द्रव्य अनुज्ञा क्या है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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