Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 304
________________ ********************************** अनुज्ञा नंदी प्रश्न वह मिश्र लौकिक द्रव्य अनुज्ञा क्या है ? उत्तर - जैसे मान लो कोई राजा, युवराज, ईश्वर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, सेठ, सेनापति, सार्थवाह आदि हैं। वे किसी को किसी कारण से सन्तुष्ट होकर मुखादि के सर्व आभरणों से मण्डित हाथी या आसन चामर आदि सर्व आभरणों से मण्डित घोड़ा आदि अथवा कटक आदि सर्व अलंकार से विभूषित दास-दासी आदि की अनुज्ञा देते हैं अर्थात् पारितोषिक के रूप में देते हैं या याचना पूरी करते हैं, वह मिश्र (अचित्त सहित सचित्त) लौकिक द्रव्य अनुज्ञा है । यह लौकिक अनुज्ञा है। से किं तं कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा ? कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा १. सचित्ता २. अचित्ता ३. मीसिया । - - ********* प्रश्न वह कुप्रावचनिक द्रव्य अनुज्ञा क्या है ? (जो कुप्रावचनिक-अन्यमत के देव गुरु, द्रव्य विषयक अनुज्ञा देते हैं, वह 'कुप्रावचनिक द्रव्य अनुज्ञा' है ।) २८७ - Jain Education International उत्तर - कुप्रावचनिक द्रव्य अनुज्ञा के तीन भेद हैं । यथा १. सचित्त, २. अचित्त और ३. मिश्र । से किं तं सचित्ता कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा ? सचित्ता कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा, से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा कस्सइ कम्मि कारणम्मि तुट्ठे समाणे आसं वा, हत्थिं वा, उट्टं वा, गोणं वा, खरं वा, घोडं वा, अयं वा, एलयं वा, दासं वा, दासिं वा अणुजाणिज्जा। से त्तं सचित्ता कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा । ****************** प्रश्न वह सचित्त कुप्रावचनिक द्रव्य अनुज्ञा क्या है ? उत्तर - जैसे मान लो कोई आचार्य (अन्यमत के मठाधीश आचार्य आदि) उपाध्याय (अन्यमत के विद्वान ओझा आदि) किसी को, किसी सेवा आदि कारण से सन्तुष्ट होकर अश्व, हाथी, ऊँट, गधा, घोड़ा, बकरा, मेंढ़ा, दास, दासी आदि की अनुज्ञा देते हैं अर्थात् पारितोषिक के रूप में देते हैं या पूर्व की याचना पूरी करते हैं, तो वह सचित्त कुप्रावचनिक द्रव्य अनुज्ञा है । से किं तं अचित्ता कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा ? अचित्ता कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा से जहाणामए आयरिए इ वा, उवज्झाए इ वा, कस्सइ कम्मि कारणम्मि तुट्ठे समाणे आसणं वा, सयणं वा, छत्तं वा, चामरं वा, पट्टं वा, मउडं वा, हिरण्णं वा, सुवण्णं वा, कंसं वा, दूसं वा, मणि- मोत्तिय संख-सिलप्पवाल- रत्तरयणमाइयं संतसार- सावएज्जं अणुजाणिज्जा। से त्तं अचित्ताकुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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