Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 298
________________ - अनुज्ञा नंदी २८१ * * * * * ****************** ******** क्रमबद्ध होती हैं, इस प्रकार अक्षरों को क्रमबद्ध पढ़ता है, (११) अस्खलित पढ़ता है - जैसे जहाँ पत्थरों के बहुत खण्ड बिछे पड़े हों, उस विषम भूमि में बन्दर गिरता पड़ता हुआ जाता है, उस प्रकार जो अटकता हुआ नहीं पढ़ता, परन्तु जैसे समभूमि भाग में बंदर अस्खलित गति से जाता है, उस प्रकार अस्खलित उच्चारण करता है, (१२) अमिलित उच्चारण करता है - जहाँ जिन पद आदि को पृथक्-पृथक् पढ़ना चाहिए, वहाँ उन्हें पृथक् पृथक् पढ़ता है, मिलाकर नहीं पढ़ता, (१३) अव्यत्यय आमेडित पढ़ता है - जहाँ पद आदि को जहाँ आगे पीछे पढ़ना चाहिए, वहाँ उन्हें वैसे पढ़ता है अथवा जहाँ अल्प विराम आदि सहित पढ़ना चाहिए, वहाँ उस प्रकार के विराम सहित पढ़ता है, (१४) प्रतिपूर्ण है - उस अनुज्ञा नंदी आगम का सूत्र, अर्थ, भावार्थ आदि सब जानता है, (१५) प्रतिपूर्ण घोष है - पुनरावृत्ति के समय भी पूर्ण शुद्ध उच्चारण करता है, (१६) कंठ ओष्ठ विप्रमुक्त है - बालक या गूंगे की भाँति गुन-गुन नहीं पढ़ता, परन्तु स्पष्ट पढ़ता है, (१७) गुरु वाचना उपगत है - अपनी मति कल्पना मात्र से नहीं पढ़ा है, परन्तु गुरु की सेवा में शुद्ध मति से पढ़ा है, (१८) वाचना.भी करता है - पढ़ता-पढ़ाता भी है, (१९) पृच्छना भी करता है - प्रश्नोत्तर भी करता है, (२०) परिवर्तना भी करता है - यथा समय दुहराता-सुनता भी है, (२१) धर्मकथा भी करता है, परन्तु अनुप्रेक्षा नहीं करता - अनुज्ञा पद या अनुज्ञा नन्दी के भावों पर उपयोग नहीं लगाता, तो वह उपयोग रहित ज्ञाता-आगम से द्रव्य अनुज्ञा है। कम्हा? अणुवओगो दव्वमिति कट्ट। शंका - अनुज्ञा पद या अनुज्ञा नन्दी आगम का इतना अच्छा जानकार भी आगम से द्रव्य अनुज्ञा कैसे हुआ? (अनुज्ञा का गौण जानकार कैसे?) समाधान - इसलिए कि ज्ञान दो प्रकार का हैं - (१) लब्धि रूप ज्ञान और (२) उपयोग रूप ज्ञान। जिसमें लब्धि रूप ज्ञान के साथ वर्तमान में उपयोग रूप ज्ञान भी हो, वही मुख्य होने से भावरूप ज्ञान माना गया है। परन्तु जिसमें लब्धिरूप ज्ञान के साथ वर्तमान में उपयोग रूप ज्ञान नहीं है, वह गौण होने से द्रव्यरूप ज्ञान माना गया है। उपर्युक्त पुरुष, अनुज्ञापद या अनुज्ञा नंदी का मात्र लब्धिरूप ज्ञान युक्त ही है, परन्तु अनुप्रेक्षात्मक उपयोग रूप ज्ञान युक्त नहीं है। अतएव उसे 'आगम से द्रव्य अनुज्ञा' माना गया है। - णेगमस्स णं, एगो अणुवउत्तो आगमओ एगा दव्वाणुण्णा, दोण्णि अणुवउत्ता आगमओ दोण्णि दव्वाणुण्णाओ, तिण्णि अणुवउत्ता, आगमओ तिण्णि दव्वाणुण्णाओ एवं जावइआ अणुवउत्ता तावइयाओ दव्वाणुण्णाओ। नय विचार - सात नयों में - १ पहला नैगम नय अर्थात् अनेक विचार वाला, उपयोग रहित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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