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नन्दी सूत्र
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आगमसत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिटुं। बिंति सुयणाणलंभं, तं पुव्वविसारया धीरा॥ ९४॥
अर्थ - सम्यक्श्रुत को भी बुद्धि के आठ गुणों के साथ ग्रहण किया गया हो, तभी वास्तविक श्रुतज्ञान का लाभ है (अन्यथा नहीं)।
विवेचन - 'पूर्व विशारद' - दृष्टिवाद के पाठी, धीर - उपसर्ग आदि के समय भी व्रत प्रत्याख्यानों को दृढ़तापूर्वक पालने वाले, संत भगवंत कहते हैं कि -
. जो आगम शास्त्रों का (जिनसे जीवादि तत्त्वों का सम्यक् यथार्थ बोध हो, ऐसे सम्यक्श्रुत का) ग्रहण है, वही वास्तविक श्रुतज्ञान का लाभ है। मिथ्याश्रुत ग्रहण, वास्तविक श्रुतज्ञान का लाभ नहीं। ___जिससे जीवादि तत्त्वों का यथार्थ सम्यक् बोध होता है, ऐसे सम्यक्श्रुत रूप आचारांग आदि तथा इनसे विपरीत मिथ्याश्रुत रूप महाभारत आदि का परिचय पहले. दे दिया है। अब सूत्रकार, बुद्धि के आठ गुणों को बतलाते हैं।
बुद्धि के आठ गुण १ सुस्सूसइ २ पडिपुच्छइ ३ सुणेइ ४ गिण्हइ य ५ ईहए यावि। ६ तत्तो अपोहए वा ७ धारेइ ८ करेइ वा सम्मं ॥ ९५॥
भावार्थ - १. जो 'शुश्रुषा करता है' - गुरुदेव जो कहते हैं उसे विनययुक्त सुनने की इच्छा रखता है, एकाग्र होकर सुनता है। २. 'प्रतिपृच्छा करता है' - सुनते हुए श्रुत में जहाँ शंका हो जाय, वहाँ अति नम्र वचनों से गुरुदेव के हृदय को आह्लादित करता हुआ, 'पूछता' है। ३. 'सुनता है' - पूछने पर गुरुदेव जो कहते हैं, उन शब्दों को चित्त को डोलायमान न करते हुए सावधान चित्त हो सुनता है। ४. 'ग्रहणं करता है' - उन शब्दों को सुन कर उनके अर्थों को समझता है। ५. 'ईहा करता है' - गुरुदेव के पूर्व कथन और पश्चात् कथन में विरोध न आवे, इस प्रकार सम्यक् पर्यालोचना करता है। ६. 'अपोह करता है' - विचारणा के अन्त में गुरुदेव जैसा कहते हैं, तत्त्व वैसा ही है, अन्यथा नहीं - इस प्रकार स्वमति में सम्यक् निर्णय करता है। ७. 'धारण करता है' - वह निर्णय कालांतर तक स्मरण में रहे, इस प्रकार उसकी धारणा (अविच्युति) करता है। ८. 'करता है' - श्रुतज्ञान में जिसे त्याग करना कहा है, उसका त्याग करता है, जिसकी उपेक्षा करना कहा है, उसकी उपेक्षा करता है तथा जिसका धारण करना कहा है, उसे धारण करता है।
अब सूत्रकार सुनने की विधि बताते हैं।
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