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श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - दृष्टिवाद
चूलिका वस्तु - पहले उत्पाद पूर्व की ४, दूसरे अग्रायणीय पूर्व की १२, तीसरे वीर्यप्रवाद पूर्व की ८ और चौथे अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व की १० चूलिका वस्तु कही है। शेष दस पूर्वों की चूलिका वस्तुएँ नहीं हैं । सब चूलिका वस्तुएँ ३४ कही हैं।
historyओगे ।
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अब सूत्रकार पूर्वों की वस्तुओं की संख्या सरलता से स्मरण में रखने के लिए संग्रहणी गाथा प्रस्तुत करते हैं।
दस चोद्दस अट्ठ अट्ठारसेव, बारस दुवे य वत्थूणि ।
सोलस तीसा बीसा, पण्णरस अणुप्पवायम्मि ॥ ८९ ॥ बारस इक्कारसमे, बारसमे तेरसमे वत्थूणि ।
तीसा पुण तेरसमे, चोइसमे पण्णवीसाओ ॥ ९० ॥
चौदह पूर्वों में क्रमशः १०, १४, ८, १८, १२, २,१६,३०,२०,१५, १२, १३, ३० और २५ वस्तुएँ कही हैं।
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चत्तारि दुवाल अट्ठ चेव, दस चेव चुल्लवत्थूणि । आइल्लाण चउण्हं, सेसाणं चूलिया णत्थि ॥ ९१ ॥ से त्तं पुव्वगए ।
आदि के चार पूर्वों में क्रमशः ४, १२, ८ तथा १० चूलिका वस्तु कही हैं। शेष की चूलिकाएँ नहीं हैं। यह वह पूर्वगत है ।
से किं अणुओगे ? अणुओगे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा
मूलपढमाणुओगे,
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प्रश्न 'वह ' अनुयोग' क्या है ?
उत्तर - अनुयोग के दो भेद हैं। वे इस प्रकार हैं १. मूल प्रथमानुयोग और २. गंडिकानुयोग । विवेचन - अनुयोग का अर्थ है मूल विषय के साथ अनुरूप या अनुकूल सम्बन्ध, ऐसे सम्बन्ध वाला विषय जिस शास्त्र में हो, उसे 'अनुयोग' कहते हैं ।
से किं तं मूलपढमाणुओगे ? मूलपढमाणुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमणाई, आउं, चवणाई, जम्मणाणि, अभिसेया, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलणाणुप्पयाओ, तित्थपवत्तणाणि य, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिणमणपज्जव - ओहिणाणी, सम्मत्तसुयणाणिणो य वाई, अणुत्तरगई य, उत्तरवेडव्विणो य मुणिणो, जत्तिया
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