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श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - दृष्टिवाद
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जो-जो प्रवर्तिनी आयाएँ हुईं, वे कही जाती हैं । १६. - १९. चतुर्विध संघ का परिमाण कहा जाता है - उत्कृष्ट जितने साधु, जितनी साध्वियाँ, जितने श्रावक और जितनी श्राविकायें एक काल में रहीं, उनकी संख्या और उनमें जो प्रमुख थे, उनके नाम दिये जाते हैं । २०. जितने केवलज्ञानी । २१. जितने मनःपर्यवज्ञानी । २२. जितने अवधिज्ञानी । २३. जितने समस्त आगमों के ज्ञाता-उत्कृष्ट श्रुतज्ञानी हुए, उनकी संख्या दी जाती है । २४. जितने वादी हुए (देव, दानव, मनुष्यों से वाद में पराजित न होने वाले, चर्चा में निपुण हुए) २५. जितने अनुत्तर गति हुए (अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए) । २६. जितने उत्तर वैक्रिय करने में समर्थ मुनिराज हुए और २७. जितने सिद्ध हुए, उनकी संख्या दी जाती । २८. भगवान् ने 'सिद्धिपथ' - मोक्षमार्ग जैसा दिखलाया । २९. और वह जितने काल ठहरा, या ठहरेगा, वह कहा जाता है। ३०. जिन तीर्थंकरों ने जहाँ पादपोपगमन किया । ३१. जितने भक्त का अनशन कर कर्मों का अन्त किया, वह बताया जाता है और ३२. उत्तम मुनिवरों ने अज्ञान तिमिर और मोह सागर से सदा के लिए पूर्ण मुक्त होकर मोक्ष के अनुत्तर सुख को प्राप्त किया, वह कहा जाता है। इत्यादि ऐसे अन्य भी भाव, मूल प्रथमानुयोग में कहे गये हैं । यह मूल प्रथमानुयोग है ।
से किं तं गंडियाणुओगे ? गंडियाणुओगे कुलगरगंडियाओ, तित्थयरगंडियाओ, चक्कवट्टिगंडियाओ, दसागंडियाओ, बलदेवगंडियाओ, वासुदेवगंडियाओ, गणधरगंडियाओ, भद्दबाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडियाओ, हरिवंसगंडियाओ, उस्सप्पिणीगंडियाओ, ओसप्पिणीगंडियाओ, चित्तंतरगंडियाओ, अमरणरतिरियणिरयगइगमणविविहपरियदृणेसु एवमाइयाओ गंडियाओ आघविज्जंति, पण्णविज्जति । से त्तं गंडियाणुओगे । से त्तं अणुओगे ।
प्रश्न - वह गण्डिकानुयोग क्या है ?
( ईख आदि के शिखर भाग और मूलभाग को तोड़ कर ऊपरी छिलकों को छीलकर, मध्य की गाँठों को हटाकर, जो छोटे-छोटे समान खण्ड बनाये जाते हैं, उन्हें 'गण्डिका' (गण्डेरी) कहते हैं । उस गण्डिका के समान जिस शास्त्र में अगले पिछले विषम अधिकार से रहित, मध्य के समान अधिकार वाले विषय हों, उसे 'गण्डिका अनुयोग' कहते हैं ।)
उत्तर - गण्डिका अनुयोग में - १. कुलकर गण्डिकाएँ कही जाती हैं । उत्सर्पिणी के दूसरे आरे के प्रारम्भ में और अवसर्पिणी के तीसरे आरे के अन्त में जगत् की मर्यादा का निर्माण और रक्षण करने वाले 'कुलकर' कहलाते हैं। ऐसे सुमति कुलकर आदि के चरित्र कहे जाते हैं । २. तीर्थंकर गण्डिकाएँ ३. चक्रवर्ती गण्डिकाएँ ४. दशार्ह गण्डिकाएँ कही जाती हैं (बलदेव, वासुदेव के पूज्य पुरुषों को 'दशार्ह' कहते हैं) ५. बलदेव गण्डिकाएँ ६. वासुदेव गण्डिकाएँ ७. गणधर गण्डिकाएं
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