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७. आयप्पवायं ८. कम्मप्पवायं ९. पच्चक्खाणप्पवायं १०. विज्जाणुप्पवायं ११. अवझं १२. पाणाऊ १३. किरियाविसालं १४. लोकबिंदुसारं ।
वह पूर्वगत क्या है ?
नन्दी सूत्र
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प्रश्न
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उत्तर - पूर्वगत के चौदह भेद हैं । ( पूर्व चौदह हैं ) वे इस प्रकार हैं १. उत्पाद पूर्व २. अग्रायणीय पूर्व ३. वीर्यप्रवाद पूर्व ४. अस्तिनास्ति - प्रवाद पूर्व ५. ज्ञानप्रवाद पूर्व ६. सत्यप्रवाद पूर्व ७. आत्मप्रवाद पूर्व ८. कर्मप्रवाद पूर्व ९. प्रत्याख्यानप्रवाद पूर्व १०. विद्यानुप्रवाद पूर्व ११. अवन्ध्य पूर्व १२. प्राणायु पूर्व १३. क्रियाविशाल पूर्व और १४. लोक - बिन्दुसार पूर्व ।
विवेचन जैन शासन में, तीर्थंकर, तीर्थप्रवर्तन काल में गणधरों को (जो सकल श्रुत के अर्थों की गहराई में उतरने में समर्थ होते हैं। अहिंसा, संयम, तप, इन तीन शब्दों से समस्त चरणानुयोग तथा समस्त कथानुयोग का जिनको क्षयोपशम हो जाता है तथा उत्पाद, व्यय, ध्रुव, इन तीन शब्दों से जिनको समस्त द्रव्यानुयोग तथा गणितानुयोग का क्षयोपशम हो जाता है उनको) सबसे पहले जो महान् अर्थ कहते हैं, उन महान् अर्थों को जिस सूत्र में गणधर गूँथते हैं, उसे 'पूर्वगत' कहते हैं ।
विषय
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१. उत्पाद पूर्व में सर्व द्रव्यों के और सर्व पर्यायों के उत्पाद (उत्पत्ति) उपलक्षण से विनाश तथा ध्रुवत्व का विस्तार से कथन था ।
२. अग्रायणीय पूर्व में सर्व द्रव्यों सर्व पर्यायों और सर्व जीव विशेषों के परिणाम और अल्पबहुत्व का विस्तृत ज्ञान था ।
३. वीर्यप्रवाद पूर्व में संसारी जीवों के वीर्य का उपलक्षण से सिद्धों के अवीर्य का तथा धर्मास्तिकायादि के गति सहायादि शक्तियों का विस्तार से कथन था ।
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४. अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व में लोक में धर्मास्तिकाय आदि जो वस्तुएँ हैं तथा गधे का सींग आदि जो वस्तुएँ नहीं हैं, इसी प्रकार जिन गुण पर्यायों की अस्ति है तथा नास्ति है, उनका विस्तार से कथन था ।
५. ज्ञानप्रवाद पूर्व में मतिज्ञान आदि पाँच ज्ञानों का, उपलक्षण से तीन अज्ञानों का एवं च दर्शनों का स्वामी, भेद, विषय तथा चूलिकादि द्वारों से विस्तार से कथन था ।
६. सत्यप्रवाद पूर्व में सत्यभाषा आदि चार भाषाओं का या सतरह प्रकार के संयम और असंयम का स्वरूप भेद, उदाहरण कल्प अकल्प आदि से विस्तार से कथन था ।
७. आत्मप्रवाद पूर्व में द्रव्य आत्मा आदि आठ आत्माओं का स्वरूप भेद, स्वामी, नियमा, भजना आदि से विस्तार से कथन था ।
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