Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 279
________________ २६२ नन्दी सूत्र ****** जैनमत के अनुसार नय दो हैं - १. द्रव्यार्थिक नय और २. पर्यायार्थिक नय। द्रव्यार्थिक नय के दो भेद हैं - १. संग्रह और २. व्यवहार तथा पर्यायार्थिक नय के भी दो भेद हैं - १. ऋजुसूत्र और २. शब्द। आदि के छह परिकर्म जैनमत को बतलाते थे, अतएव उनका अध्ययन इन चार नयों से किया जाता था। ___ अन्यत्र नय सात बताये गये हैं, पर यहाँ सामान्यग्राही नैगम को संग्रह में, विशेषग्राही नैगम को व्यवहार में और समभिरूढ़ तथा एवंभूत नय को शब्द नय में गर्भित मान लिया है। अतएव यहाँ चार नय ही कहे हैं। ___गोशालक का मत 'तैराशिक' कहलाता था, क्योंकि वह प्रत्येक की तीन राशियाँ बताता था। जैसे राशियाँ तीन हैं - १. जीव राशि २. अजीव राशि और ३. मिश्र राशि। उनके मतानुसार नय की भी तीन राशियाँ थीं-१. द्रव्यार्थिक २. पर्यायार्थिक और ३. द्रव्य-पर्यायार्थिक। सातवें परिकर्म का अध्ययन, नय की इन तीन राशियों से किया जाता था, क्योंकि सातवाँ परिकर्म गोशालक मत बतलाता था। ' शेष पूर्व के छह परिकर्मों का अध्ययन, नय की इन तीन राशियों से भी किया जाता था, जिससे योग्यता अधिक संपादित हो। यह परिकर्म है। से किं तं सुत्ताइं? सुत्ताई बावीसं पण्णत्ताइं, तं जहा - १. उज्जुसुयं २. परिणयापरिणयं ३. बहुभंगियं ४. विजयचरियं ५. अणंतरं ६. परंपरं ७. आसाणं ८. संजूहं ९. संभिण्णं १०. आहव्वायं ११. सोवत्थियावत्तं १२. णंदावत्तं १३. बहुलं १४. पुट्ठापुढे १५. वियावत्तं १६. एवंभूयं १७. दुयावत्तं १८. वत्तमाणपयं १९. समभिरूढं २०. सव्वओभई २१. पस्सासं २२. दुप्पडिग्गहं। प्रश्न - वह सूत्र क्या है? ' उत्तर - जिसमें पूर्वगत में आने वाले सूत्रार्थों की सूचना की जाती है, सर्व द्रव्यों के और सर्वपर्यायों के भंग विकल्पों की सूचना की जाती है, ऐसे विषय की सूचिभूत अनुक्रमणिका रूप शास्त्र को 'सूत्र' कहते हैं। - भेद - सूत्रों के बावीस भेद हैं। वे इस प्रकार हैं - १. ऋजु सूत्र २. परिणत ३. बहुभंगिक ४. विजय चरितं ५. अनन्तर ६. परंपर ७. आसान ८. संयूथ ९. संभिन्न १०. यथावाद ११. स्वस्तिक आवर्त १२. नन्दावर्त १३. बहुल १४. पृष्ट-अपृष्ट १५. व्यावर्त १६. एवंभूत १७. द्विक आवर्त १८. वर्तमान पद १९. समभिरूढ़ २०. सर्वतोभद्र २१. प्रशिष्य २२. दुष्प्रतिग्रह। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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