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१. श्रोत्र इंद्रिय अर्थ अवग्रह श्रोत्र उपकरण द्रव्य इन्द्रिय के निमित्त से, श्रोत्र भावेन्द्रिय के द्वारा पुद्गलों के शब्द को अव्यक्त रूप से जानना । २. चक्षु इन्द्रिय अर्थ अवग्रह - चक्षु उपकरण द्रव्य इन्द्रिय के योग से, चक्षु भाव इन्द्रिय के द्वारा पुद्गलों के रूप को अव्यक्त रूप से जानना। ३. घ्राण इन्द्रिय अर्थ अवग्रह - घ्राण उपकरण द्रव्य इन्द्रिय के योग से, घ्राण भाव इन्द्रिय के द्वारा पुद्गलों के गन्ध को अव्यक्त रूप में जानना । ४. जिह्वा इन्द्रिय अर्थ अवग्रह- जिव्हा उपकरण द्रव्य इन्द्रिय के योग से, जिह्वा भाव इन्द्रियं के द्वारा पुद्गलों के रस को अव्यक्त रूप में जानना । ५. स्पर्शन इन्द्रिय अर्थ अवग्रह- स्पर्शन उपकरण द्रव्य इन्द्रिय के योग से, स्पर्शन भाव इंद्रिय के द्वारा पुद्गलों के स्पर्श को जानना । ६. अनिन्द्रिय अर्थ अवग्रह द्रव्य मन के योग से भाव मन के द्वारा रूपी अरूपी पदार्थों को अव्यक्त रूप में जानना ।
नन्दी सूत्र
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विशेष - इस पदार्थ का नाम क्या है, इस पदार्थ की जाति क्या है, इस पदार्थ का गुण क्या है, इत्यादि ज्ञान जिसमें व्यक्त न हो, ऐसी मन्दतम ज्ञान मात्रा को 'अव्यक्त ज्ञान' कहते हैं। अर्थ अवग्रह में मात्र ऐसा अव्यक्त ज्ञान ही होता है, क्योंकि अर्थ अवग्रह का काल एक समय ही हैं और एक समय में नाम, जाति, गुण, क्रिया आदि का व्यक्त ज्ञान छद्मस्थों को संभव नहीं हो सकता ।
तस्स णं इमे एगट्टिया णाणाघोसा णाणावंजणा पंच णामधिज्जा भवंति, तं जहा- आगेण्हणया, उवधारणया, सवणया, अवलंबणया, मेहा-से त्तं उग्गहे ॥ ३० ॥
अर्थ - उसके एक अर्थ वाले पर भिन्न-भिन्न घोष तथा भिन्न-भिन्न व्यंजन वाले ये पाँच. नाम हैं- १. अवग्रहण २. उपधारण ३. श्रवण ४. आलंबन तथा ५. मेधा । यह अवग्रह का प्ररूपण हुआ । विवेचन - एकार्थक नाम उस अवग्रह के ये पाँच एकार्थिक नाम हैं जो नाना घोष वाले और नाना व्यंजन वाले हैं - जिनकी मात्राएँ और अक्षर एक समान नहीं हैं।
प्रश्न क्या ये पाँचों नाम एकार्थिक हैं ?
उत्तर नहीं, यह कथन सामान्य अपेक्षा से समझना चाहिए। विशेष अपेक्षा से ये भिन्न अवग्रह के नाम हैं।
अवग्रह के दो भेद हैं- १. व्यंजन अवग्रह और २. अर्थ अवग्रह। ये दोनों पहले बता दिये हैं । अवग्रह का एक तीसरा भेद हैं- ३. व्यावहारिक या औपचारिक अर्थ अवग्रह |
एक बार अर्थ अवग्रह के पश्चात् ईहा और अवाय हो जाते हैं, उसके पश्चात् भी यदि नई ईहा जगे, तो उस नई ईहा की अपेक्षा पिछले अवाय में अवग्रह का उपचार करके उसे व्यवहार में अवग्रह मानते हैं । 'ईहा के पहले जो होता है, वह अवग्रह होता है।' इस अपेक्षा नई ईहा के पूर्ववर्ती अवाय में अवग्रह का उपचार किया जाता है।
यदि उस दूसरी ईहा के पश्चात् अवाय होकर तीसरी ईहा और भी जगे, तो वह दूसरा अवाय
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