________________
२१०
नन्दी सूत्र
प्रश्न - जैसे अक्षर श्रुत के तीन भेद हैं-१. संज्ञा अक्षर श्रुत, २. व्यंजन अक्षर श्रुत, और ३. लब्धि अक्षर श्रुत। वैसे ही अनक्षर श्रुत के कितने भेद हैं ?
उत्तर - उसके भी तीन भेद होते हैं-१. संज्ञा अनक्षर श्रुत, २. व्यंजन अनक्षर श्रुत और ३. लब्धि अनक्षर श्रुत। इन तीनों में अभी जो अनक्षर श्रुत के भेद बताए हैं, उन्हें २. 'व्यंजनं अनक्षर श्रुत' के अन्तर्गत समझना चाहिए, क्योंकि वे शब्दात्मक हैं। जो हाथ की चेष्टा विशेष आदि हैं, उन्हें १. 'संज्ञा अनक्षर श्रुत' समझना चाहिए, क्योंकि वे चेष्टाएँ संज्ञात्मक है तथा जो इन दोनों से सुन कर व देखकर उत्पन्न श्रुतज्ञान है, उसे ३. 'लब्धि अनक्षर श्रुत' समझना चाहिए, क्योंकि वह ज्ञानात्मक है। इन दोनों भेदों को यहाँ नहीं कहा है, परन्तु उन्हें उपलक्षण से समझ लेना चाहिए। अब सूत्रकार श्रुतज्ञान के तीसरे और चौथे भेद का स्वरूप बताते हैं।
____३-४. संज्ञी श्रुत-असंज्ञी श्रुत से किं तं सण्णिसुयं? सण्णिसुयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा-कालिओवएसेणं, हेऊवएसेणं, दिविवाओवएसेणं।
प्रश्न - वह संज्ञीश्रुत क्या है ? (वह ४ असंज्ञी श्रुत क्या है ?)
उत्तर - संज्ञी (और असंज्ञी) श्रुत तीन प्रकार के हैं।.....१. काल की अपेक्षा, २. हेतु की अपेक्षा तथा ३. दृष्टि की अपेक्षा।
विवेचन - जो जीव संज्ञा सहित हैं, उनके श्रुत को 'संज्ञीश्रुत' कहते हैं तथा जो जीव संज्ञा रहित हैं, उनके श्रुत को 'असंज्ञी श्रुत' कहते हैं।
प्रश्न - संज्ञाएँ कितनी अपेक्षा से हैं? । उत्तर - संज्ञाएँ तीन अपेक्षाओं से हैं, वे इस प्रकार हैं
१. दीर्घकालिक की अपेक्षा, २. हेतु की अपेक्षा और ३. दृष्टिवाद की अपेक्षा। अतएव इन त्रिविध संज्ञाओं की विवक्षा से संज्ञी जीव और असंज्ञी जीव भी तीन-तीन प्रकार से हैं और इस कारण संज्ञी श्रुत और असंज्ञी श्रुत भी तीन-तीन प्रकार से हैं।
से किं तं कालिओवएसेणं? कालिओवएसेणं जस्स णं अत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से णं सण्णीति लब्भइ। जस्सणं णत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से णं असण्णीति लब्भइ। से त्तं कालिओवएसेणं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org