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नन्दी सूत्र
७. उपासकदसा से किं उवासगदसाओ? उवासगदसासुणं समणोवासयाणं णगराई, उजाणाई चेइयाइं, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ इंहलोइय-परलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वजाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, सीलव्वयगुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासपडिवजणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आविजंति। . . .
प्रश्न - वह उपासकदसा क्या है?
उत्तर - ('उपासक' का अर्थ है - श्रमण निर्ग्रन्थ की उपासना करने वाला, ऐसे गृहस्थों के जिसमें चरित्र हों। उसे - 'उपासकदसा' कहते हैं)। ___ . उपासकदसा में श्रमणोपासकों के नगर, नगर के उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, नगर में धर्माचार्य का पर्दापण, सेवा में राजा, माता-पिता आदि का गमन, धर्माचार्य की धर्मकथा, नायक की इहलौकिकपारलौकिक विशिष्ट ऋद्धि, भोगों का परित्याग, दीक्षा ग्रहण, दीक्षा पर्याय, शास्त्राभ्यास, तपाराधना, शीलव्रत-चार शिक्षाव्रत, गुण-तीन गुणव्रत, विरमण-पांच अणुव्रत, प्रत्याख्यान-दस प्रकार के तप आदि, पौषधोपवास-अष्टमी चतुर्दशी अमावस्या पूर्णिमा को पौषध, प्रतिमा श्रावक की ११ प्रतिमाएं, उपसर्ग-देवादि कष्ट, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोक प्राप्ति, उच्च मनुष्यकुल में पुनर्जन्म, पुनः बोधिलाभ और अन्तक्रिया आदि कहा जाता है।
उवासगदसाणं परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजाओ णिज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीओ, संखेजाओ पडिवत्तीओ।
अर्थ - उपासकदशा में परित्त वाचनाएं, संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेष्ट, संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियाँ, संख्येय संग्रहणियाँ और संख्येय प्रतिपत्तियाँ हैं।
से णं अंगट्ठयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, दस समुहेसणकाला।
अर्थ - उपासकदसा, अंगों में सातवाँ अंग है। इसका एक श्रुतस्कंध है, दस अध्ययन हैं, दस उद्देशनकाल हैं, दस समुद्देशन काल हैं।
संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा।
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