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नन्दी सूत्र
संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ णिज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
अर्थ - अन्तकृतदसा में परित्त वाचनाएँ, संख्येय अनुयोगद्वार, संख्येय वेष्ट, संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियाँ, संख्येय संग्रहणियाँ और संख्येय प्रतिपत्तियाँ हैं ।
सेणं अंगट्टयाए अट्टमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठ वग्गा, अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ठ समुद्देसणकाला।
अर्थ - अन्तकृत अंगों में आठवाँ अंग है। इसका एक श्रुतस्कंध है । आठ वर्ग हैं। (९० अध्ययन हैं- पहले, चौथे, पाँचवें, आठवें वर्ग में दस-दस-यों चार के ४० । दूसरे में ८, तीसरे और सातवें में तेरह-तेरह-यों दोनों के २६ और छठे में १६ अध्ययन, सब मिलाकर ९० अध्ययन हैं ।) वर्ग के अनुसार आठ उद्देशनकाल हैं और आठ समुद्देशनकाल हैं ।
संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा ।
अर्थ- संख्येय सहस्र पद हैं। संख्येय ( वर्तमान में ८५० श्लोक परिमाण) अक्षर हैं। अनन्त गम हैं, अनन्त पर्यव हैं, परित्त त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं।
सासयकडणिबद्धणिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, णिदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति ।
अर्थ - शाश्वत और कृत पदार्थों के विषय निबद्ध और निकाचित जिन प्रज्ञप्त भाव कहे जाते हैं, प्रज्ञप्त किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, दर्शित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं और उपदर्शित किये जाते हैं ।
से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ । से त्तं अंतगडदसाओ ॥ ५२ ॥
अर्थ- वह आत्मा इस प्रकार ज्ञाता और इसी प्रकार विज्ञाता होता है। अंतगडदसा में चरण करण की प्ररूपणा है । यह अंतगडदसा का स्वरूप है।
अब सूत्रकार नौवें अंग का परिचय देते हैं ।
९. अनुत्तरौपपातिक
से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ? अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं
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