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श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - संज्ञी श्रुत, असंज्ञी श्रुत
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उत्तर - दृष्टिवाद की अपेक्षा जिन्हें संज्ञीश्रुत-सम्यक् श्रुत का क्षयोपशम हो, वे संज्ञी और जिन्हें असंज्ञीश्रुत-मिथ्याश्रुत का क्षयोपशम हो, वे असंज्ञी हैं। दृष्टिवाद की अपेक्षा यह संज्ञीश्रुत तथा असंज्ञीश्रुत का प्ररूपण हुआ।
विवेचन - सुदेव, सुगुरु, सुधर्म कौन है और कुदेव, कुगुरु और कुधर्म कौन है? इसका सम्यग्-यथार्थ ज्ञान, जीव-अजीव पुण्य-पाप, आस्रव-संवर-निर्जरा, बंध, मोक्ष, इन नव तत्त्वों का सम्यग् यथार्थज्ञान और रुचि रूप जो सम्यग्दर्शन है, वह दृष्टिवाद की अपेक्षा संज्ञा है।
२. संजी असंजी जीव - जिन जीवों में ग्रह दष्टिवाद की विवक्षावाली संज्ञा पायी जाती है अर्थात् सम्यग्दर्शन पाया जाता है, वे दृष्टिवाद संज्ञा की अपेक्षा 'संज्ञी जीव' हैं तथा जिनमें नहीं पाया जाता अर्थात् जिनमें मिथ्यादर्शन या मिश्र-दर्शन पाया जाता है, वे दृष्टिवाद संज्ञा की अपेक्षा 'असंज्ञी जीव' हैं।
__ यह सम्यग्दृष्टि रूप संज्ञा, जो दीर्घकालिक संज्ञा की अपेक्षा संज्ञी हैं, उनमें से भी जिन्हें दर्शनमोहनीय की तीन और अनन्तानुबन्धी की चार-इन सात प्रकृतियों का क्षयोपशम, उपशम या क्षय या इनमें से सम्यक्त्व मोहनीय को छोड़कर छह प्रकृतियों का क्षयोपशम, उपशम या क्षय होता है, उन सम्यग्दृष्टि नारक, गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय, गर्भज मनुष्य और देवों में ही पायी जाती है। शेष जिन जीवों को मिथ्यादर्शन-मोहनीय और मिश्र-दर्शनमोहनीय का विचित्र क्षयोपशम होता है, उन मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि नारक, गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय, गर्भज मनुष्य और देवों में यह संज्ञा नहीं पायी जाती। . . ३. संजीश्रुत असंज्ञीश्रुत - जिन जीवों में यह दृष्टिवाद संज्ञा पायी जाती है, उन जीवों का सम्यक् श्रुत, दृष्टिवाद संज्ञा की अपेक्षा (सम्यग्दर्शन की अपेक्षा) 'संज्ञीश्रुत' है तथा जिन जीवों में यह दृष्टिवाद संज्ञा नहीं पायी जाती, उन जीवों का मिथ्याश्रुत, दृष्टिवाद संज्ञा की अपेक्षा (मिथ्यादर्शन, मिश्रदर्शन की अपेक्षा) 'असंज्ञीश्रुत' है।
प्रश्न - शास्त्रों में आहारसंज्ञा आदि चार संज्ञाएँ अथवा दस संज्ञाएँ भी पायी जाती हैं?
उत्तर - यहाँ उन संज्ञाओं की अपेक्षा संज्ञी असंज्ञी का विभाग नहीं बन सकता, क्योंकि वे संज्ञाएँ एकेन्द्रियों में भी पायी जाती है। अतएव उस अपेक्षा को यहाँ ग्रहण नहीं किया है। वे संज्ञाएँ अत्यन्त. मन्द रूप होने से भी ग्रहण नहीं की हैं।
. इन चार प्रकार की संज्ञाओं में से लोकोत्तर मोक्ष मार्ग की दृष्टि में, दृष्टिवाद की अपेक्षा वाली सम्यग्दर्शन रूप संज्ञा ही महत्त्वपूर्ण और उपादेय है। शेष हेतु की अपेक्षा वाली संज्ञा, दीर्घकालिक अपेक्षा वाली मन रूप संज्ञा और आहार आदि संज्ञा, तुच्छ और उपेक्षणीय है।
यह दृष्टिवाद की अपेक्षा संज्ञीश्रुत और असंज्ञीश्रुत है। यह संज्ञीश्रुत असंज्ञीश्रुत है।
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