Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 244
________________ श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - कालिक सूत्र के भेद २२७ किसका कहाँ तक उपपात है, इसका वर्णन है। ६. 'राज-प्रश्नीय'-इसमें प्रदेशी राजा के आस्तिकवाद सम्बन्धी प्रश्न और केशीमुनि के उत्तर हैं। ७. 'जीव-अजीव अभिगम'-इसमें जीव और अजीव विषयक ज्ञान है। ८. 'प्रज्ञापना'-इसमें जीव आदि ३६ पर विषयक प्रज्ञापन्ग है। ९. 'महाप्रज्ञापना'-यह प्रज्ञापना की अपेक्षा शब्द से और अर्थ से विस्तृत था। १०. 'प्रमाद-अप्रमाद'-इसमें प्रमाद-अप्रमाद के स्वरूप, भेद, फल आदि का कथन था। ११. 'नंदी'-इसमें पाँच ज्ञान विषयक वर्णन है। १२. अनुयोग-द्वार'इसमें उपक्रम निक्षेप अनुगम और नय विषयक वर्णन है। १३. देवेन्द्रस्तव'-इसमें देवेन्द्र कृत अर्हन्त स्तुति थी। १४. 'तंदुल-वैचारिक'-इसमें मनुष्य जीवन भर में चावल कितने प्रमाण में खाता है, तंदुल परिमाण मत्स्य नरक में किस कारण से जाता है आदि का कथन था। १५. 'चन्द्र-वेध्यक'-इसमें चन्द्रसूर्य आदि का वेध था। १६. सूर्य-प्रज्ञप्ति'-इसमें सूर्य की चाल आदि की प्रज्ञापना है। १७. पौरुषीमण्डल'-इसमें सूर्य किस मण्डल में रहता है, तब प्रहर आदि के समय पुरुष की छाया कितनी गिरती है, इसका वर्णन था। १८. 'मण्डल-प्रवेश'-इसमें सूर्य दक्षिण और उत्तर के किस मण्डल में कब प्रवेश करता है, इसका वर्णन था। १९. विद्याचरण-विनिश्चय'-इसमें सम्यक्ज्ञान और सम्यक्रिया के स्वरूप, फल आदि का विशेष निश्चय था। २०. गणिविद्या'-इसमें आचार्य के लिए दीक्षा, ज्ञानाभ्यास, तपश्चरण, विहार, संलेखना आदि के मुहूर्त आदि के लिए उपयोगी ज्योतिष निमित्त आदि विद्याएँ थीं। २१. 'ध्यान-विभक्ति'-इसमें ध्यान के चार भेदों के स्वरूप, फल आदि का वर्णन था। २२. 'मरणविभक्ति'-इसमें मरण के १७ भेदों का स्वरूप, फल आदि का वर्णन था। २३. 'आत्म-विशुद्धि'इसमें आत्मा को विशुद्ध करने वाले प्रायश्चित्त आदि का वर्णन था। २४. वीतरागश्रुत'-इसमें सरागता से वीतरागता की ओर पहुंचने के साधनों का वर्णन था। २५. 'संलेखनाश्रुत'-इसमें संलेखना की विधि, काल आदि का कथन था। २६. 'विहारकल्प'-इसमें स्थविरकल्प का वर्णन था। २७. 'चरण विधि'इसमें चारित्र की विधि थी। २८. 'आतुर-प्रत्याख्यान'-इसमें असाध्य ग्लान मुनि को विधिवत् आहार की कमी करते हुए भक्त प्रत्याख्यान तक पहुंचाने की विधि का वर्णन था। २९. 'महाप्रत्याख्यान'-इसमें भव के अन्त में किये जाने वाले अनशन आदि महाप्रत्याख्यानों का वर्णन था। इन २९ में से ८ विद्यमान हैं तथा २१ विच्छेद गये हैं। इत्यादि उत्कालिक के अनेक भेद हैं। - विशेष - आवश्यक सूत्र भी उत्कालिक हैं। कालिक सूत्र के भेद . से किं तं कालियं? कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा-उत्तरायणाई, दसाओ, कप्पो, ववहारो, णिसीहं, महाणिसीहं, इसिभासियाइं, जंबूदीवपण्णत्ती, दीवसागरपण्णत्ती, चंदपण्णत्ती, खुड्डिआविमाणपविभत्ती, महल्लियाविमाणपविभत्ती, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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