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नन्दी सूत्र
इन दस भेदों के और भी दो-दो भेद हैं- १. नित्यवादी और २. अनित्यवादी । नित्यवादी प्रत्येक पदार्थ को एकांत नित्य मानते हैं और अनित्यवादी प्रत्येक पदार्थ को एकांत अनित्य मानते हैं। यों २० भेद हुए ।
ये बीस भेद जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष, इन नव ही तत्त्व विषयक हैं। यों सब १८० क्रियावादियों के भेद हैं।
२. अक्रियावादी - जो क्रिया को नहीं मानते, वे 'अक्रियावादी' हैं। इनमें से कोई जगत् को शून्य कहकर क्रिया का निषेध करते हैं। कोई जगत् के पदार्थ को एकांत. क्षणिक मानकर क्रिया का निषेध करते हैं । कोई 'सत्-असत् क्रिया का नियत फल नहीं मिलता' - यह कहकर क्रिया का निषेध करते हैं । कोई परलोक का अभाव बता कर क्रिया का निषेध करते हैं। कोई आत्मा का अभाव बता कर क्रिया का निषेध करते हैं । कोई ज्ञान को ही मुख्य बता कर क्रिया का निषेध करते हैं ।
ये लोग १. काल २. ईश्वर ३. आत्मा ४. स्वभाव ५. नियति की क्रिया का खंडन करते हैं । कोई ६. यदृच्छवादी- 'क्रिया का नियत फल नहीं होता' - यह कह कर क्रिया का खंडन करते हैं। ये १. स्वतः या २. परत: किसी भी प्रकार से क्रिया का अस्तित्व स्वीकार नहीं करते। पुण्य पाप को आस्रव के अन्तर्गत करने पर जो सात तत्त्व रहते हैं, उनकी क्रिया का विचित्र खंडन करते हैं। इस प्रकार इनके सब ६x२= १२७ = ८४ भेद होते हैं।
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३. अज्ञानवादी - जो अज्ञान को श्रेष्ठ मानते हैं, वे 'अज्ञानवादी' हैं। ये ज्ञान को मतभेद का कारण, विवाद का कारण, क्लेश का कारण और संसार वृद्धि का कारण बताते हैं । 'ज्ञानी को पाप अधिक लगता है, वही संसार को उन्मार्गगामी बनाता है, अतः ज्ञान त्याज्य है ' - ऐसा कहते हैं ।
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इनका मत है कि जीवादि नौ पदार्थ १. सत् है या २. असत् है ३. सत्-असत् है या ४. अवक्तव्य है या ५. सत् अवक्तव्य है या ६. असत् अवक्तव्य है या ७. सत्-असत् अवक्तव्य है - यह कौन जानता है ? कोई भी निश्चित रूप से नहीं जानता, केवल अपनी-अपनी कल्पना का राग अलापते हैं अथवा यदि कोई जानता भी है, तो उससे लाभ क्या है ? कुछ नहीं । मात्र हानि ही होती है । ९४७ = ६३। इसी प्रकार नौ पदार्थ की उत्पत्ति १. सत् से हुई या २. असत् से हुई या ३. सत् असत् से हुई या ४. अवक्तव्य से हुई, यह भी कौन जानता है ? या जानने से क्या लाभ है ? यों इनके ६३+४-६७ भेद होते हैं ।
४. विनयवादी - जो विनय को एकांत श्रेष्ठ बताते हैं, वे 'विनयवादी' हैं। इनमें कोई ज्ञान और क्रिया को जटिल तथा भक्ति को सरल बताकर एकांत मिथ्या विनय का समर्थन करते हैं। कोई कंकर, पत्थर, जल, स्थल सर्वत्र ईश्वर की कल्पना करके विनय का समर्थन करते हैं। कोई ज्ञान और क्रिया कासार 'सेवा' मानकर विनय का समर्थन करते हैं।
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