Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 246
________________ श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - प्रकीर्णक ग्रन्थ २२९ * * * * २२. देवेन्द्रोपपात-इन सूत्रों में उन-उन देवों के आकर्षण का वर्णन था, जिसका एकाग्र होकर उपयोगपूर्वक स्वाध्याय करने से उस उस नाम के देव का आसन कम्पित हो जाता और वह भक्तिपूर्वक सेवा कार्य के लिए उपस्थित होता था। २३. उत्थान श्रुत २४. समुत्थानश्रुत-इसमें वैसा वर्णन था, जिसका एकाग्र होकर उपयोगपूर्वक स्वाध्याय करने से बसे हुए गाँव आदि उठ जाते और उठे गाँव आदि पुनः बस जाते थे। २५. नाग परिज्ञा-इसमें नागकुमारों का परिज्ञान था। २६. निरयावलिकाएँ-इसमें नरकगत काल आदि दशकुमारों के चरित्र हैं। कल्पिका-यह निरयावलिका का दूसरा नाम है अथवा इसमें कल्प विमान में उत्पन्न देवों का कथानक था। २७. कल्पावतंसिकाइसमें सौधर्म कल्प में उत्पन्न पद्म आदि १० कुमारों का वर्णन है। २८. पुष्पिता-इसमें जो संयम पालने से फूले, फिर विराधना से मुरझाये और पुनः संयम से फूले, उनके कथानक हैं। २९. पुष्पचूलाइसमें भगवान् पार्श्वनाथ की बड़ी शिष्या पुष्पचूला की दस विराधक साध्वियों के चरित्र हैं अथवा इसमें पुष्पिता के अर्थ विशेष का प्रतिपादन है। ३०. वृष्णिदसा-इसमें अन्धकवृष्णि के कल में उत्पन्न १२ साधुओं के चरित्र हैं। कल्पिका आदि पाँच, निरयावलिका सूत्र के पाँच वर्ग स्था य हैं। ३१. आशीविष भावना ३२. दृष्टिविष भावना-इसमें इस लब्धि विषयक वर्णन था। तथा ग्के जप से विष दूर होता था। ३३. स्वप्न भावना ३४. महास्वप्न भावना-इनमें ७२ स्वप्न के स्वरूप फल आदि का वर्णन था। ३५. तेजो निसर्ग-इसमें तेजोलेश्या की प्राप्ति, प्रयोग आदि का वर्णन था। ___ इन पैंतीस का. नक सूत्रों में से १२ वर्तमान में विद्यमान हैं। महानिशीथ, ऋषिभाषित तथा समुत्थान श्रुत ये ३ नकली विद्यमान हैं, २० विच्छेद गये हैं। विशेष - बारह अंग सूत्र भी कालिक हैं। आवश्यक सूत्र १, उत्कालिक सूत्र २९, कालिक सूत्र ३५, अंग सूत्र १२, सब - १+२९+३५+१२ = ७७ हुए। प्रकीर्णक ग्रन्थ एवमाइयाइं चउरासीइ पइण्णगसहस्साई भगवओ अरहओ उसहसामिस्स आइतित्थयरस्स, तहा संखिज्जाइं पइण्णगसहस्साई मज्झिमग्गाणं जिणवराणं, चोद्दसपइण्णगसहस्साणि भगवओवद्धमाणसामिस्स। अर्थ - आदि तीर्थंकर पूज्य भगवान् ऋषभ स्वामी के ८४ हजार प्रकीर्णक ग्रन्थ थे। मध्यम जिनवरों के संख्यात-संख्यात हजार प्रकीर्णक ग्रन्थ थे। भगवान् वर्द्धमान स्वामी के १४ हजार प्रकीर्णक ग्रन्थ थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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