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२१६
नन्दी सूत्र
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- ४. मिथ्यादृष्टि के लिए सम्यक्श्रुत है। क्यों? सम्यक्त्व में निमित्त बनते हैं इसलिए। क्योंकि कई मिथ्यादृष्टि, मिथ्यात्व मोहनीय के क्षयोपशम आदि के समय इन्हें पढ़-सुनकर सूक्ष्मार्थ समझ में आने के कारण या उत्पन्न शंका का निवारण हो जाने के कारण या नय, भंग, निक्षेप आदि का ज्ञान हो जाने के कारण या दूसरों के द्वारा सम्यक् रूप में समझाए जाने के कारण इन सम्यक्श्रुतों को-'ये सम्यक्श्रुत हैं'-यों सम्यक्श्रद्धा के साथ ग्रहण करते हैं और अपनी पूर्व की मिथ्यादृष्टि छोड़ देते हैं। यह चौथा भंग है। यह सम्यक्श्रुत है।
६.मिथ्या श्रुत से किं तं मिच्छासुयं? मिच्छासुयं जं इमं अण्णाणिएहिं मिच्छादिट्ठिएहिं सच्छंदबुद्धिमइविगप्पियं।
प्रश्न - वह मिथ्याश्रुत क्या है?
उत्तर - कुत्सित ज्ञानियों एवं मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी स्वच्छंद-आधारहीन बुद्धि कल्पना के सहारे खड़े किये गये शास्त्र मिथ्याश्रुत हैं।
विवेचन - १. जिसमें सुदेव, सुगुरु और सद्धर्म का, षड् द्रव्य एवं नव तत्त्व के ज्ञान का अभाव है, जो मिथ्या एकान्तवाद पूर्वक, उन्मत्त के सदृश, पूर्वापर विरुद्ध तथा अयथार्थ-मिथ्याज्ञान है। जो विषय कषाय को उत्पन्न करता है, जो सम संवेगादि उत्पन्न नहीं करता अथवा अप्रशस्त रूप में उत्पन्न करता है, जो हिंसा, असंयम और भोग की प्रेरणा देता है, अहिंसा, संयम, तप की प्रेरणा नहीं देता या अप्रशस्त रूप में प्रेरणा देता है, जो भव-भ्रमण बढ़ाता है, जो देवगति तक ही सीमित है, जो कर्मबन्ध बढ़ाता है, जो पुण्य तक ही सीमित है, वह 'मिथ्याश्रुत' है।
२-३. जो प्रवचन और आगम की अपेक्षा अज्ञानी हैं और कुत्सितज्ञानी हैं, जो मिथ्यादृष्टि हैं, जो लोक दृष्टि वाले हैं, जिनकी विशुद्ध मोक्षदृष्टि नहीं है, उनकी स्वच्छन्द (तीर्थंकर अभिप्राय से बाहर) प्रतिकूल, मति और बुद्धि के द्वारा विकल्पित जो प्रवचन और आगम हैं, वे 'मिथ्याश्रुतं' हैं। ___तं जहा-भारहं, रामायणं भीमासुरुक्खं, कोडिल्लयं, सगडभहियाओ, खोड (घोडग) मुहं, कप्पासियं, णागसुहमं, कणगसत्तरी, वइसेसियं, बुद्धवयणं, तेरासियं, काविलियं, लोगाययं, सद्वितंतं, माढरं, पुराणं, वागरणं, भागवयं, पायंजली, पुस्सदेवयं, लेहं, गणियं, सउणरुयं णाडयाई, अहवा वावत्तरि कलाओ, चत्तारि य वेया संगोवंगा।
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