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श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - मिथ्या श्रुत
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___अर्थ - मिथ्याश्रुत के अनेक भेद हैं। वे इस प्रकार हैं-१. भारत-यह व्यास रचित है, २. रामायण-यह बाल्मिकी रचित है। ये दोनों मुख्यतः लौकिक समाज नीति के शास्त्र हैं। ३. भीमासुर रचित शास्त्र। ४. कौटिल्य-चाणक्य रचित राजनीति शास्त्र। ५. शकट भद्रिकाएँ। ६. खोडमुख अथवा घोटक मुख-यह नवपूर्व पाठी वात्स्यायन रचित है, संभव है यह कामनीति का शास्त्र हो। ७. कासिक। ८. नागसूक्ष्म । ९. कनक सतसई-ये तीनों अर्थशास्त्र संभव हैं। १०. वैशेषिक-रोहगुप्त (षडुलूक) निह्नव प्रवर्तित वैशेषिक मत के ग्रंथ। ११. बुद्ध वचन-धम्मपद त्रिपिटक आदि बौद्धमत के ग्रंथ। १२. त्रैराशिक-गोशालक मत के ग्रंथ। १३. कापिलिक-कपिल ऋषि प्रवर्तित सांख्यमत के शास्त्र। १४. लोकायत। १५. षष्टितन्त्र-तत्वोपप्लवसिंह आदि, चार्वाक मत के ग्रंथ। १६. माठर-माठर आचार्य की सांख्याकारिकावत्ति. यह सांख्य मत का शास्त्र है। १७. पराण-ब्रह्मपराण आदि पुराण, ये व्यास रचित हैं, ब्राह्मण मत के ग्रंथ हैं। १८. व्याकरण-पाणिनी आदि रचित शब्द शास्त्र। १९. भागवत्-यह भी व्यास रचित है, यह वैष्णव मत का ग्रंथ है। २०. पातञ्जलीय-पतञ्जली रचित योग शास्त्र। २१. पुष्यदैवत। २२. लेख। २३. गणित। २४. शकुनरुत-पक्षी शब्द विचार आदि निमित्त शास्त्र, ये तीनों बहत्तर कलाओं के अन्तर्गत हैं। ये सब मिथ्याश्रुत हैं।
: अथवा संक्षेप में बहत्तर कला रूप 'लौकिक शास्त्र' और सांगोपांग ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वणवेद आदि रूप 'कुप्रावचनिक शास्त्र' मिथ्याश्रुत हैं।
एयाई मिच्छादिट्ठिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छासुयं। एयाइं चेव सम्मदिट्ठिस्स सम्मत्तपरिग्गहियाइं सम्मसुयं ।
अर्थ - मिथ्यादृष्टि इन्हें मिथ्यारूप से ही ग्रहण करते हैं, अत: उनके लिए ये मिथ्याश्रुत ही हैं। पर सम्यग्दृष्टि इन्हें भी सम्यक्श्रुत रूप में ग्रहण करते हैं। अत: उनके लिए ये भी सम्यक्श्रुत हैं। 'विवेचन - परिणति की अपेक्षा चार भंग हैं
१. जिस मिथ्यादृष्टि ने इन मिथ्याश्रुतों को (ये सम्यक्श्रुत हैं, इस) मिथ्याश्रद्धा के साथ ग्रहण किया है, उसके लिए ये मिथ्याश्रुत हैं (क्योंकि इससे वह मोक्ष के विपरीत मिथ्या आग्रही बनता है।)। ____. २. जिस सम्यग्दृष्टि ने इन मिथ्याश्रुतों को ('ये मिथ्याश्रुत है'-इस) सम्यग् श्रद्धा के साथ ग्रहण किया है, उसके लिए ये सम्यक्श्रुत हैं (क्योंकि सम्यग्दृष्टि इन्हें पढ़ सुन कर इनकी मोक्ष के प्रति असारता को जानकर सम्यक्त्व में स्थिरतर बनता है।)। - अहवा मिच्छदिट्ठिस्स वि एयाइं चेज सम्मसुयं कम्हा? सम्मत्तहेउत्तणओ, जम्हा ते मिच्छदिट्ठिया तेहिं चेव समएहिं चोइया समाणा केइ सपक्खदिट्ठिओ चयंति। से त्तं मिच्छासुयं॥४१॥
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