Book Title: Nandi Sutra
Author(s): Parasmuni
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 228
________________ श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - संज्ञी श्रुत, असंज्ञी श्रुत २११ प्रश्न - वह दीर्घकालिक संज्ञा क्या है? (उसकी अपेक्षा संज्ञी जीव और असंज्ञी जीव कौनकौन हैं और संज्ञी-श्रुत असंज्ञी-श्रुत क्या-क्या हैं ?) उत्तर - जिसमें ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा, चिंता और विमर्श है, वह कालिकी अपेक्षा संज्ञी है और जिसमें ये शक्तियाँ नहीं, वह असंज्ञी है। विवेचन - लम्बे भूतकाल और लम्बे भविष्यकाल विषयक-१. ईहा करना-सत्पदार्थ की पर्यालोचना करना, २. अपोह करना-निश्चय, अवाय करना, ३. मार्गणा करना-सत्पदार्थ में पाये जाने वाले गुण धर्म का विचार करना, ४. गवेषणा करना-सत्पदार्थ में न पाये जाने वाले गुण धर्म का विचार करना, ५. चिंता करना-भूत में यह कैसे हुआ? वर्तमान में क्या करना है? भविष्य में क्या होगा? इसका चिंतन करना, ६. विमर्श करना-यह इसी प्रकार घटित होता है, यह इसी प्रकार हुआ, यह इसी प्रकार होगा, इत्यादि, पदार्थ का सम्यक्-यथार्थ निर्णय करना आदि-दीर्घकालिक संज्ञा' कहलाती है। २. संज्ञी असंज्ञी जीव - जिन जीवों में यह दीर्घकालिक संज्ञा पायी जाती है, वे इस दीर्घकालिक संज्ञा की अपेक्षा 'संज्ञी जीव' हैं तथा जिनमें ये नहीं पायी जाती, वे 'असंज्ञी जीव' हैं। ___ यह दीर्घकालिक संज्ञा जितने भी मन वाले प्राणी हैं-नारक, गर्भज तिर्यंच, गर्भज मनुष्य और देव में पायी जाती हैं। क्योंकि जैसे आँखों वाला प्राणी, दीपक की सहायता से सभी पदार्थों का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करता है, वैसे ही ये भी भाव मन वाले प्राणी द्रव्यमन की सहायता से दीर्घ भूतकाल और दीर्घ भविष्यकाल विषयक पहले पीछे के विचार द्वारा पदार्थ का स्पष्ट विचार करने में समर्थ होते हैं तथा जितने भी मन रहित प्राणी हैं-सम्मूर्छिम एक इन्द्रिय से लेकर पाँच इन्द्रिय वाले तिर्यंच और सम्मूर्छिम मनुष्यों में यह संज्ञा नहीं पायी जाती, क्योंकि जैसे अन्धा प्राणी नेत्र और दीपक के अभाव में किसी भी पदार्थ का स्पष्ट ज्ञान करने में असमर्थ होता है, वैसे ही ये भी भावमन और द्रव्यमन के अभाव में (अल्पता में) दीर्घ विचारपूर्वक पदार्थ का स्पष्ट विचार करने में असमर्थ रहते हैं। ३. संज्ञी असंज्ञी श्रुत - जिन जीवों में यह दीर्घकालिक संज्ञा पायी जाती है, उन जीवों का श्रुत, दीर्घकालिक संज्ञा की अपेक्षा 'संज्ञी श्रुत' है तथा जिन जीवों में यह संज्ञा नहीं पायी जाती, उन जीवों का श्रुत, दीर्घकालिक संज्ञा की अपेक्षा 'असंज्ञी श्रुत' है। . से किं तं हेऊवएसेणं? हेऊवएसेणं जस्सणं अस्थि अभिसंधारणपुब्बिया करणसत्ती से णं सण्णीति लब्भइ। जस्स णं णत्थि अभिसंधारणपुब्विया करणसत्ती से णं असण्णीति लब्भइ। से त्तं हेऊवएसेणं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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