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मति ज्ञान - ईहा के भेद
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तीसेणं इमे एगट्ठिया णाणाघोसा णाणावंजणा पंच णामधिज्जा भवंति, तं जहाआभोणया, मग्गणया गवसणया, चिंता, वीमंसा, से त्तं ईहा॥३१॥
अर्थ - ईहा के पाँच नाम एकार्थिक हैं, जो नानाघोष और नानाव्यञ्जन वाले हैं। वे इस प्रकार हैं- १. आभोगनता, २. मार्गणता, ३. गवेषणता, ४. चिन्ता और ५. विमर्श। यह ईहा की प्ररूपणा हुई।
विवेचन - विशेष अपेक्षा से ईहा की विभिन्न पाँच अवस्थाओं के नाम इस प्रकार हैं
१. आभोगनता - अर्थावग्रह से पदार्थ को अव्यक्त रूप में ग्रहण करने के पश्चात् निरन्तर ग्रहीत पदार्थ का प्राथमिक विचार करना-'आभोगनता' है। जैसे-किसी ने द्रव्य से पुरुष सदृश ठूठ को देखा, क्षेत्र से-जहाँ मनुष्यों का आवागमन अल्प होता था, ऐसे निर्जन वन में दूर से देखा। काल से-सूर्य अस्त के पश्चात् जब प्रकाश घट रहा था और अंधकार बढ़ रहा था, तब देखा। उस समय उसका उस देखे हुए दूंठ के प्रति यह प्राथमिक विचार होना कि 'क्या यह दूँठ है ?' - आभोगनता है।
२. मार्गणता - अवग्रह से जाने हुए पदार्थ में पाये जाने वाले और न पाये जाने वाले धर्मों-- स्वभावों का विचार करना-'मार्गणता' है। जैसे उक्त ढूँठ के विषय में यह विचार होना कि 'जो हँठ होता है, उसमें १. निश्चलता. २. लताओं का चढना, ३. कौओं का बैठना, मँड आदि धर्म पाये जाते हैं और जो पुरुष होता है, उसमें १. चलमानता, २. अंगोपांगता, ३. सिर खुजलाना आदि धर्म पाये जाते हैं। दूंठ में पुरुष के धर्म नहीं पाये जाते और पुरुष में ढूँठ के धर्म नहीं पाये जाते। मुझे तो यह दिखाई दे रहा है, उसमें ढूँठ में पाये जाने वाले धर्म हैं या दूंठ में न पाये जाने वाले, किंतु पुरुष में पाये जाने वाले धर्म हैं? ऐसा विचार होना मार्गणता है।
३. गवेषणता - अवग्रह से जाने हुए पदार्थ में, न पाये जाने वाले धर्मों को त्यागते हुए उसमें पाये जाने वाले धर्मों का विचार करना-'गवेषणता' है। जैसे-उक्त दूँठ के प्रति यह विचार होना कि इस दूंठ में पुरुष में पाये जाने वाले-सचल होना, हाथ पैर आदि अंगोपांग होना, सिर खुजलाना आदि कोई धर्म नहीं पाया जाता, परन्तु दूंठ में पाये जाने वाले-अचल होना, लताओं का चढ़ना, कौओं का मंडराना आदि धर्म पाये जाते हैं-'गवेषणता' है।
४. चिन्ता - अवग्रह से जाने हुए पदार्थ में पाये जाने वाले धर्मों का बारंबार चिन्तन करना'चिन्ता' है। जैसे-उक्त दूँठ के निर्णय के लिए आँखें मलकर, आँख को पुनः-पुनः खोलते बन्द करते हुए, सिर को ऊँचा-नीचा कर देखते हुए, बार-बार इसका विचार करना कि 'मैं जो इसमें ढूंठ में पाये जाने वाले धर्म देख रहा हूँ, क्या वह यथार्थ है अथवा कहीं कुछ भ्रान्ति है?"-चिन्ता है।
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