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श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - अक्षर श्रुत
२०७ .in m otion.......................... है। उस आकृति की संज्ञा-नाम भी 'अ' 'क' आदि है। लोग भी उसे 'अ' 'क' आदि रूप में ही व्यवहार में लाते हैं।
भेद - संज्ञा अक्षर अर्थात् लिपियों के प्राचीन काल में अनेक भेद थे। जैसे-१. ब्राह्मी लिपि, २. यवन लिपि, ३. अंक लिपि, ४. गणित लिपि आदि। वर्तमान में भी हिन्दी, तमिल आदि कई भेद पाये जाते हैं।
से किं तं वंजणक्खरं? वंजणक्खरं - अक्खरस्स वंजणाभिलावो। से तं वंजणक्खरं।
प्रश्न - वह व्यञ्जन अक्षरश्रुत क्या है ?
उत्तर - अक्षरों के स्पष्ट उच्चारण को अर्थात् भाषा को 'व्यंजनाक्षर' कहते हैं। यह व्यंजनाक्षर की परिभाषा हुई। . विवेचन - श्रोता को अर्थ का ज्ञान हो सके, इस प्रकार अक्षरों के स्पष्ट उच्चारण को 'व्यंजन अक्षर' कहते हैं। जैसे दीपक से घट, पट आदि पदार्थ दृश्य होते हैं, वैसे ही भाषा से वक्ता के अभिप्राय ज्ञात होते हैं, इसलिए भाषा को 'व्यंजन अक्षर' कहते हैं।
भेद-अर्द्धमागधी, संस्कृत आदि प्राचीन काल में भाषा के कई भेद थे। आज भी लोकभाषा, साहित्यभाषा आदि कई भेद पाये जाते हैं।
से किं तंलद्धिअक्खरं? लद्धिअक्खरं अक्खरलद्धियस्सलद्धिअक्खरं समुप्पज्जइ, तं जहा-सोइंदियलद्धिअक्खरं चक्खिंदियलद्धिअक्खरं, घाणिंदियलद्धिअक्खरं, रसणिंदियलद्धिअक्खरं, फासिंदियलद्धिअक्खरं, णोइंदियलद्धिअक्खरं। से तं लद्धिअक्खरं। सेत्तं अक्खरसुयं।।
प्रश्न - वह लब्धि अक्षरश्रुत क्या है?
उत्तर - अक्षर लब्धि वाले जीव को लब्धि अक्षर उत्पन्न होता है। लब्ध्यक्षर के छह भेद हैं१. श्रोत्रेन्द्रिय लब्ध्यक्षर, २. चक्षुरिन्द्रिय लब्ध्यक्षर, ३. घ्राणेन्द्रिय लब्ध्यक्षर, ४. जिह्वेन्द्रिय लब्ध्यक्षर, ५. स्पर्शनेन्द्रिय लब्ध्यक्षर तथा ६. अनिन्द्रिय लब्ध्यक्षर। यह लब्ध्यक्षर का प्ररूपण हुआ। यह अक्षरश्रुत हुआ।
विवेचन - शब्दार्थ को मतिज्ञान से ग्रहण कर या स्मरण कर, शब्द और अर्थगत वाच्यवाचक सम्बन्ध की पर्यालोचनापूर्वक (शब्द उल्लेख सहित) शब्द व अर्थ (पदार्थ) जानना अर्थात् भावश्रुत को 'लब्धि अक्षर' कहते हैं।
स्वामी - जिसमें अक्षर लब्धि होती है अर्थात् लिपि पढ़ कर या भाषा सुन कर समझने की
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