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नन्दी सूत्र
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श्रुतज्ञान के भेद-प्रभेद - १. अक्षरश्रुत-वर्णात्मक श्रुत। २. अनक्षर श्रुत-वर्ण व्यतिरिक्त श्रुत। ३. संज्ञीश्रुत-संज्ञी जीवों का श्रुत। ४. असंज्ञीश्रुत-असंज्ञी जीवों का श्रुत। ५. सम्यक् श्रुत-लोकोत्तर श्रुत। ६. मिथ्या श्रुतकुप्रावचनिक तथा लौकिक श्रुत। ७. सादि श्रुत-आदि सहित श्रुत। ८. अनादि श्रुत-आदि रहित श्रुत। ९. सपर्यवसित श्रुत-अन्त सहित श्रुत। १०. अपर्यवसित श्रुत-अन्त रहित श्रुत। ११. गमिक श्रुतसदृश पाठवाला श्रुत। १२. अगमिक श्रुत-असदृश पाठवाला श्रुत। १३. अंगप्रविष्ट श्रुत-अंग के अन्तर्गत श्रुत। १४. अनंग प्रविष्ट श्रुत-अंगबाह्य श्रुत। (यों १ दो, २ दो, ३ दो, ४ दो, ५ दो, ६ दो और ७ दो के भेद मिलाकर श्रुतज्ञान के ७४२-१४ भेद हुए।) ...
१. अक्षर श्रुत अब सूत्रकार श्रुतज्ञान के पहले और दूसरे भेद का स्वरूप बताते हैं।
से किं तं अक्खरसुयं? अक्खरसुयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा-सण्णक्खरं, वंजणक्खरं, लद्धिअक्खरं।
प्रश्न - वह अक्षरश्रुत क्या है ? उत्तर - अक्षरश्रुत के तीन भेद हैं-१. संज्ञाक्षर २. व्यंजनाक्षर तथा ३. लब्ध्यक्षर। . विवेचन - जो 'अ' 'क' आदि वर्णात्मक श्रुत है, उसे 'अक्षरश्रुत' कहते हैं।
भेद - अक्षरश्रुत के तीन भेद हैं-१. संज्ञा अक्षर-लिपि, २. व्यञ्जन अक्षर-भाषा और ३. लब्धि अक्षर-लिपि, भाषा और वाच्यपदार्थ का ज्ञान।
३. संज्ञा अक्षर और व्यंजन अक्षर अर्थात् लिखी हुई लिपियाँ और उच्चरित भाषाएँ-'द्रव्य श्रुत' हैं, क्योंकि ये ज्ञान रूप नहीं हैं, परन्तु ज्ञान के लिए कारणभूत हैं तथा लब्धि अक्षर-'भावश्रुत' है, क्योंकि वह स्वयं ज्ञान रूप है, क्षयोपशमरूप है।
से किं तं सण्णक्खरं? सण्णक्खरं अक्खरस्स संठाणागिई। से त्तं सण्णक्खरं। प्रश्न - वह संज्ञा अक्षरश्रुत क्या है ?
उत्तर - अक्षरों के संस्थान-आकृति को अर्थात् लिपि को 'संज्ञाक्षर' कहते हैं। यह संज्ञाक्षर की परिभाषा हुई।
विवेचन - पट्टी, पत्र, पुस्तक, पत्थर, धातु आदि पर लिखित निर्मित 'अ' 'क' आदि अक्षरों की आकृति को 'संज्ञाक्षर' कहते हैं, क्योंकि वह आकृति 'अ' 'क' आदि के जानने में निमित्तभूत
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