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मति ज्ञान - विशाला नगरी का विनाश
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एक समय आचार्य विहार करके जा रहे थे। वह शिष्य भी साथ में था। जब आचार्य एक छोटी पहाड़ी पर से उतर रहे थे, तो उन्हें मार देने के विचार से उस शिष्य ने पीछे से एक बड़ा पत्थर लुढ़का दिया। ज्यों ही पत्थर लुढ़क कर निकट आया, कि आचार्य सम्भल गये और अपने दोनों पैरों को फैला दिया, जिससे वह पत्थर उनके पौरों के बीच में होकर निकल गया। आचार्य को शिष्य की शत्रुता देख कर क्रोध आ गया। उन्होंने कहा - "अरे नीच! तू इतना दुष्ट एवं गुरुघातक बन गया? जा, तू किसी स्त्री के संयोग से पतित हो जायेगा।" शिष्य ने विचार किया-"मैं गुरु के इन वचनों को झूठा सिद्ध करूँगा। मैं ऐसे निर्जन स्थान में जाकर रहूँगा, जहाँ स्त्रियों का आवागमन ही न हो। फिर उनके संयोग से पतित होने की कल्पना ही कैसे हो सकती है"-ऐसा विचार कर वह एक नदी के किनारे जाकर ध्यान करने लगा। वर्षा ऋतु में नदी का प्रवाह बड़े वेग से आया, किंतु उसके तप के प्रभाव से नदी दूसरी और बहने लगी। इसलिए उसका नाम 'कुलबाबुक' हो गया। वह गोचरी के लिए नगर में नहीं जाता. था, किंतु उधर से निकलने वाले मुसाफिरों से, महीने पन्द्रह दिन में आहार ले लिया करता था। इस प्रकार वह कठोर तप करता था।
मागधिका वेश्या कपट श्राविका बन कर साधुओं की सेवा भक्ति करने लगी। धीरे-धीरे उसने कुलबालुक साधु का पता लगा लिया। वह उसी नदी के किनारे जाकर रहने लगी और कुलबालुक की सेवा-भक्ति करने लगी। उसकी भक्ति और आग्रह के वश होकर एक दिन वह वेश्या के यहाँ गोचरी गया। उसने विरेचक औषधि मिश्रित लड्डु बहराये, जिससे उसे अतिसार हो गया। तब वह वेश्या उसके शरीर की सेवा शुश्रूषा करने लगी। उसके स्पर्श आदि से मुनि का चित्त विचलित हो गया। वह उसमें आसक्त हो गया। उसे पूर्ण रूप से अपने वश में करके वह वेश्या उसे कोणिक के पास ले आई। . .
कोणिक ने कुलबालुक से पूछा-"विशाला नगरी का कोट किस प्रकार गिराया जा सकता है?" कुलबालुक ने कहा-"मैं विशाला नगरी में जाता हूँ। जब सफेद वस्त्र द्वारा संकेत करूँ, तब आप अपनी सेना लेकर कुछ पीछे हटते जाना।" इस प्रकार कोणिक को समझा कर वह नैमित्तिक का रूप बना कर विशाला नगरी में चला आया।
उसे भविष्यवेत्ता समझ कर विशाला के लोग उससे पछने लगे-"कोणिक हमारी नगरी के चारों ओर घेरा डाल कर पड़ा हुआ है। यह उपद्रव कब दूर होगा?" उसने कहा-"तुम्हारी नगरी के बीच में श्रीमुनिसुव्रत स्वामी की नाल जहाँ गाड़ी गई थी वहाँ स्तूप बना हुआ है। उसके कारण यह र पद्रव बना हुआ है। यदि उसे उखाड़ कर फेंक दिया जाये, तो यह उपद्रव तत्काल दूर हो सकता है।"
नैमित्तिक के वचन पर विश्वास करके लोग उस स्तूप को खोदने लगे। उसी समय उसने सफेद वस्त्र को ऊँचा करके कोणिक को इशारा किया, जिससे वह अपनी सेना को लेकर पीछे
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