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नन्दी सूत्र
के साथ उसका विवाह हुआ। वह १४ रत्नों का स्वामी बना और छह खण्ड पृथ्वी को जीत कर चक्रवर्ती बना।
___ धनु मंत्री ने सुरंग खुदवा कर अपने स्वामी-पुत्र ब्रह्मदत्त की रक्षा कर ली। यह उसकी। पारिणामिकी बुद्धि थी।
१०. नागदत्त मुनि की क्षमा
(साधु) किसी समय एक तपस्वी साधु पारणे के दिन भिक्षा के लिए गये। वापिस लौटते समय रास्ते में उनके पैर से दब कर एक मेंढक मर गया। शिष्य ने उन्हें शुद्ध होने के लिए कहा, किन्तु उन्होंने शिष्य की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। शाम को प्रतिक्रमण के समय शिष्य ने उनको फिर याद दिलाई। शिष्य के वचनों को सुन कर उन्हें क्रोध आ गया। वे शिष्य को मारने के लिए उठे, किन्तु अन्धेरे में एक स्तम्भ से सिर टकरा जाने से उनकी उसी समय असमाधि भावों में मृत्यु हो गई। विराधकपने मर कर वह ज्योतिषी देवों में उत्पन्न हुआ। वहाँ से चव कर वह दृष्टि-विष सर्प हुआ। . उस सर्प को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। वह अपने पूर्व भव को देख कर पश्चात्ताप करने लगा। 'मेरी दष्टि से किसी जीव की हिंसा न हो जाय' - ऐसा सोचकर वह प्रायः अपने बिल में ही रहता था, बाहर बहुत कम निकलता था।
एक समय किसी सर्प ने वहां के राजा के पुत्र को डस लिया, जिससे राजकुमार की मृत्यु हो गई। इस कारण राजा को सर्पो पर बहुत क्रोध उत्पन्न हुआ। सर्प पकड़ने वाले गारुड़ियों को बुला कर उसने राज्य के सभी सो को मार देने की आज्ञा दी। सो को मारते हुए वे लोग उस दृष्टिविष सर्प के बिल के पास पहुंचे। उन्होंने उसके बिल पर औषधि डाली। औषधि के प्रभाव के वह बिल से बाहर खींचा जाने लगा। मेरी दृष्टि से मुझे मारने वाले पुरुषों का विनाश न हो जाय' ऐसा सोच कर वह पूँछ की तरह से बाहर निकलने लगा। वह ज्यों-ज्यों बाहर निकलता गया, त्यों-त्यों वे लोग उसके टुकड़े करते गये, किन्तु उसने समभाव रखा। उन लोगों पर लेशमात्र भी क्रोध नहीं किया। परिणामों की सरलता के कारण वहाँ से मर कर वह उसी राजा के घर पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ। उसका नाम 'नागदत्त' रखा गया। बाल्यावस्था में ही उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया, जिससे उसने दीक्षा ले ली।
. विनय, सरलता, समभाव आदि अनेक असाधारण गुणों के कारण वह देवों का वन्दनीय हो गया। उसे वन्दना करने के लिये देव, भक्ति पूर्वक आते थे। पूर्वभव में तिर्यंच होने के कारण उसे भूख बहुत लगती थी। विशेष तप उससे नहीं होता था।
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