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नन्दी सूत्र
दूसरे दिन श्रावक को बहुत पश्चात्ताप हुआ। उसने सोचा- " मैंने अपना लिया हुआ व्रत खण्डित कर दिया। मैंने बहुत बुरा किया।" इस प्रकार पश्चात्ताप करते हुए श्रावक फिर दुर्बल होने लगा। स्त्री ने अपने पति से सच्ची बात कह कर रहस्य प्रकट कर दिया, जिसे सुन कर श्रावक बहुत. प्रसन्न हुआ और गुरु के पास जाकर मानसिक कुंविचार और परस्त्री के संकल्प से विषय सेवन के लिए प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध हुआ ।
उस श्रावक की स्त्री ने अपने पति के व्रत और प्राण दोनों की रक्षा कर ली। यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि थी ।
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९. ब्रह्मदत्त की रक्षा (मंत्री)
कम्पिलपुर में ब्रह्म नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम चुलनी था। एक समय सुखशय्या पर सोती हुई रानी ने चक्रवर्ती के जन्म सूचक चौदह महास्वप्न देखे और एक परम प्रतापी पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम 'ब्रह्मदत्त' था। जब वह बालक था, उसी समय ब्रह्म राजा का देहान्त हो गया । ब्रह्मदत्त कुमार छोटा था, इसलिए राज्य का कार्य ब्रह्म राजा के मित्र दीर्घपृष्ठ को सौंपा गया । दीर्घपृष्ठ बड़ी योग्यता पूर्वक राज्य कार्य चलाने लगा। वह निःशंक होकर अन्तःपुर में आता जाता था । कुछ समय पश्चात् रानी चुलनी के साथ उसका स्नेह हो गया। वे दोनों विषय-सुख का भोग करते हुए आनन्दपूर्वक समय बिताने लगे।
ब्रह्म राजा के मंत्री का नाम 'धनु' था। वह राजा का परम हितैषी था। राजा की मृत्यु के पश्चात् वह हर प्रकार से ब्रह्मदत्त की रक्षा करता था। मंत्री के पुत्र का नाम 'वरधनु' था। ब्रह्मदत्त और वरधनु दोनों मित्र थे ।
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राजा दीर्घपृष्ठ और रानी चुलनी के अनैतिक सम्बन्ध का पता धनु मंत्री को लग गया। उसने ब्रह्मदत्त को इस बात की सूचना की तथा अपने पुत्र वरधनु को सदा राजकुमार की रक्षा के लिए आदेश दिया। माता के दुश्चरित्र को सुन कर कुमार ब्रह्मदत्त को बहुत क्रोध आया। यह बात उसके लिए असह्य हो गई। उसने किसी उपाय से उन्हें समझाने का यत्न किया। एक दिन वह एक कौआ और एक कोयल को पकड़ कर लाया और अन्तःपुर में जाकर उससे उच्च स्वर में कहा " इन पक्षियों की तरह जो वर्णसंकरपना करेंगे, उन्हें मैं अवश्य दण्ड दूँगा ।"
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कुमार की बात सुनकर दीर्घपृष्ठ ने रानी से कहा " कुमार यह बात अपने को लक्षित करके कह रहा है। मुझे कौआ और तुझे कोयल बताया है। यह अपने को अवश्य दण्ड देगा । " रानी ने कहा " आप इसकी चिन्ता नहीं करें। यह बालक है, बाल-क्रीड़ा करता है ।"
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