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मति ज्ञान - पति रक्षा
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नगर में पहुँच जाना चाहिए।" इस बात को सब ने स्वीकार किया और वैसा ही करके वे राजगृह नगर में पहुँच गये। उस समय तक धन्ना सार्थवाह जैन नहीं था। ___एक समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में पधारे। जनता दर्शनार्थ गई और धन्ना सार्थवाह भी गया। भगवान् का धर्मोपदेश सुन कर उसे जैन धर्म पर श्रद्धा उत्पन्न हुई, वह जैन बना, साथ ही उसे वैराग्य भी उत्पन्न हुआ जिससे उसने भगवान् के पास दीक्षा ग्रहण की। कई वर्षों तक संयम का पालन किया और वहाँ की आयु पूर्ण होने पर प्रथम सौधर्म देवलोक में देव हुआ। वहाँ से चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेगा।
उपरोक्त रीति से धन्ना सार्थवाह ने अपने और अपने पुत्रों के प्राण बचा लिए। यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि थी।
८. पति रक्षा
(श्रावक) किसी नगर में एक सेठ रहता था। वह बड़ा धर्मात्मा एवं श्रावक व्रत का पालन करता था। • एक दिन उसने किसी दूसरे श्रावक की स्त्री को देखा। वह अत्यन्त रूपवती थी। उसे देखकर वह . उस पर मोहित हो गया। लज्जा के कारण उसने अपनी इच्छा किसी के सामने प्रकट नहीं की। उसकी इच्छा बहुत प्रबल थी। वह दिन-प्रतिदिन दुर्बल होने लगा। जब उसकी स्त्री ने बहुत आग्रह पूर्वक दुर्बलता का कारण पूछा, तो श्रावक ने सच्ची बात कह दी।
श्रावक की बात सुन कर उसकी स्त्री ने विचार किया-'ये श्रावक हैं। स्वदार-संतोष व्रत के धारक हैं। फिर भी मोहकर्म के उदय से इन्हें ऐसे कुविचार उत्पन्न हुए हैं। यदि इन कुविचारों में इनकी मृत्यु हो गई, तो दुर्गति में चले जाएंगे। इसलिए कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे इनके ये कुविचार भी हट जाय, व्रत अनाचार तक खंडित न हो, अतिचार तक में बात पूरी हो जाय और उस अतिचार की भी विशुद्धि हो जाये, पारिणामिक बुद्धि से कुछ सोच कर उसने कहा-"स्वामिन्! आप चिन्ता मत कीजिये। वह मेरी सखी है। मेरे कहने से वह आज ही आ जायेगी।" ऐसा कह कर वह अपनी सखी के पास गई और वे ही कपड़े माँग लाई-जिन्हें पहने हुए उसे श्रावक ने देखा था। कपड़े लाकर उसने अपने पति से कह दिया कि-"आज शाम को वह आएगी। उसे लज्जा आती है, इसलिए आते ही दीपक बुझा देगी और मौन रहेगी।" श्रावक ने उसकी बात मान ली।
शाम के समय श्रावक की स्त्री ने अपनी सखी के लाये हुए कपड़े पहन कर उसके समान अपना श्रृंगार कर लिया इसके बाद प्रतीक्षा में बैठे हुए अपने पति के पास चली गई।
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