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- नन्दी सूत्र
PATARRAN
१४. सुन्दरीनन्द को प्रतिबोध
(नासिकराज) नासिकपुर नाम का एक नगर था। वहाँ नन्द नाम का एक सेठ रहता था। उसकी स्त्री का नाम सुन्दरी था। सुन्दरी नाम के अनुसार ही रूप-लावण्य से सुन्दर थी। नन्द का उस पर बहुत मोह था। वह उसे बहुत प्रिय थी। वह उसमें इतना अनुरक्त था कि उससे एक क्षण भर के लिए भी दूर रहना नहीं चाहता था। इसलिए लोग उसे 'सुन्दरीनन्द' कहने लग गये। उसकी आसक्ति बहुत अधिक थी।
सुन्दरीनन्द के एक छोटा भाई था। वह मुनि हो गया था। जब मुनि को मालूम हुआ कि बड़ा भाई सुन्दरी में अत्यन्त आसक्त है, तो उसे प्रतिबोध देने के लिए वह नासिकपुर आया और उद्यान में ठहर गया। नगर की जनता धर्मोपदेश सुनने के लिए गई। किन्तु सुन्दरीनन्द नहीं गया। धर्मोपदेश के पश्चात् मुनि, गोचरी के लिए नगर में पधारे। अनुक्रम से गोचरी करते हुए वे अपने भाई सुन्दरीनन्द के घर गये। अपने भाई की स्थिति को देख कर मुनि को बड़ा विचार उत्पन्न हुआ। उसने सोचा कि यह सुन्दरी में अत्यन्त मोहित है। इसलिए जब तक इसको इससे अधिक का प्रलोभन नहीं दिया जायेगा. तब तक इसमें इसका राग कम नहीं हो सकेगा। ऐसा सोचकर उन्होंने वैक्रिय लब्धि द्वारा एक सुन्दर बन्दरी बनाई और भाई से पूछा -
"क्या यह सुन्दरी सरीखी सुन्दर है?" उसने कहा - "यह सुन्दरी से आधी सुन्दर है।" फिर मुनि ने एक विद्याधरी बना कर भाई से पूछा - "क्या यह सुन्दरी जैसी है?" सुन्दरीनन्द ने उत्तर दिया - "हाँ, यह सुन्दरी के समान है।" इसके बाद मुनि ने एक देवी बनाई और पूछा - "यह कैसी है?" उसे देख कर सुन्दरीनन्द ने कहा - "यह तो सुन्दरी से भी अधिक सुन्दर है।"
मुनि ने कहा - "थोड़ा-सा धर्म का आचरण करने से तुम भी ऐसी अनेक देवियाँ प्राप्त कर सकते हो।"
इस प्रकार मुनि के प्रबोध से सुन्दरीनन्द का सुन्दरी में राग कम हो गया। कुछ समय पश्चात् उसने दीक्षा ले ली और पीछे तो देवी से भी विरक्त बने। ___ अपने भाई को प्रतिबोध देने के लिए मुनि ने जो कार्य किया, वह उनकी पारिणामिकी बुद्धि थी। पीछे मुनिराज ने विकुर्वणा कर प्रायश्चित्त लेकर आत्मशुद्धि की।
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