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नन्दी सूत्र
ग्रहण कर लिया। उसी समय बालक ने रोना बन्द कर दिया। उसे लेकर वे गुरु के पास आये। आते हुए उन्हें गुरु ने दूर से देखा। उनकी झोली को विशेष भारी देख कर गुरु ने दूर से ही कहा"यह वज्र सरीखा भारी पदार्थ क्या ले आये हो?" निकट आकर मुनि ने अपनी झोली खोल कर गुरु महाराज को दिखलाई। अत्यन्त तेजस्वी और प्रतिभाशाली बालक को देख कर वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा - "यह बालक शासन के लिए आधारभूत होगा।" उसका नाम "वज्र" रखा गया। इसके पश्चात् वह बालक संघ को सौंप दिया गया। मुनि वहाँ से अन्यत्र विहार कर गए। अब बालक सुखपूर्वक बढ़ने लगा। कुछ दिनों के बाद उसकी माता सुनन्दा, अपना पुत्र वापिस लेने के लिए आई, किन्तु संघ ने कहा कि - 'यह तो दूसरों की धरोहर है। हम इसे कैसे दे सकते हैं?' ऐसा कह कर संघ ने उस बालक को देने से इन्कार कर दिया।
एक समय आचार्य सिंहगिरि अपने शिष्य परिवार सहित वहाँ पधारे। धनगिरि मुनि भी उनके साथ थे। उनका आगमन सुन कर सुनन्दा उनके पास आई और अपना पुत्र माँगने लगी। जब साधुओं ने उसे देने से इन्कार कर दिया, तो सुनन्दा ने राजा के पास जाकर पुकार की। राजा ने कहा - "एक तरफ बालक की माता बैठ जाये और दूसरी तरफ बालक का पिता। बुलाने पर बालक जिसके पास चला जायेगा, वह उसी का होगा।" - दूसरे दिन सभी एक स्थान पर एकत्रित हुए। एक ओर बहुत से नगर निवासियों के साथ बालक की माता सुनन्दा बैठी हुई थी। उसके पास खाने के बहुत से पदार्थ और खिलौने आदि थे। दूसरी ओर संघ के साथ आचार्य सिंहगिरि तथा धनगिरि आदि साधु बैठे हुए थे। राजा ने कहा - "पहले बालक का पिता इसे अपनी तरफ बुलावे।" उसी समय नगर निवासियों ने कहा - "देव! बालक की माता दया करने योग्य है। इसलिए पहले इसे बुलाने की आज्ञा कीजिये।" उन लोगों की बात को स्वीकार कर राजा ने पहले माता को आज्ञा दी। इस पर माता ने खाने की बहुत-सी चीजें और खिलौने आदि दिखा कर बालक को अपनी ओर बुलाने की बहुत कोशिश की।
बालक ने सोचा-"यदि मैं दृढ़ रहा, तो माता का मोह दूर हो जायेगा और वह भी व्रत अंगीकार कर लेगी, जिससे दोनों का कल्याण होगा।" ऐसा सोच कर बालक अपने स्थान से जरा भी नहीं हिला। इसके पश्चात् राजा ने उसके पिता से बालक को अपनी तरफ बुलाने के लिए कहा। पिता ने बालक से कहा -
"जइसि कयन्झवसाओ, धम्मज्झय मूसियं. इमं वइर। - गिह लहुं रयहरणं, कम्मरयपमजणं धीर॥"
___ अर्थात् - "हे वज्र! यदि तुमने निश्चय कर लिया है, तो धर्माचरण के चिह्नभूत तथा कर्मरज को साफ करने वाले इस रजोहरण को स्वीकार करो।"
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