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नन्दी सूत्र
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होता
विवेचन - १. जो बुद्धि गुरुजनों के विनय से उत्पन्न हो, उसे वैनेयिकी बुद्धि कहते हैं। २. वैनेयिकी बुद्धि से भारी से भारी लगने वाले गुरुतर कार्य भी-जिनका वहन करना अतीव कठिन
है, हल्के से हल्के बन जाते हैं और अतीव सरलता से पूर्ण सम्पन्न हो जाते हैं। ३. गुरु से ज्ञान, दर्शन, चारित्र या इहलोक परलोक और मोक्ष विषयक जो सूत्रार्थ ग्रहण किया जाता है, उसके सार, रहस्य और मर्म स्वतः ध्यान में आ जाते हैं। ४. वैनेयिकी बुद्धि से जो कार्य किये जाते हैं, उसका उभयलोक में फल मिलता है।
वैनेयिकी बुद्धि के १५ दृष्टान्त अब सूत्रकार वैनेयिकी बुद्धि को स्पष्ट करने वाले पन्द्रह दृष्टान्तों के नाम की संग्रह गाथा . कहते हैं।
णिमित्ते अत्थसत्थे य, लेहे गणिए य कूव अस्से य। गद्दभ लक्खण गंठी, अगए रहिए य गणिया य॥ ७४॥
अर्थ - १. निमित्त, २. अर्थशास्त्र, ३. लेख, ४. गणित, ५. कूप, ६. अश्व, ७. गर्दभ, ८. लक्षण, ९. ग्रन्थी, १०. औषधि, ११. रथिक और १२. गणिका।
सीया साडी दीहं च, तणं अवसव्वयं य कुंचस्स। णिव्वोदए य गोणे, घोडगपडणं च रुक्खाओ॥ ७५॥
अर्थ - १३. भीगी साड़ी, दीर्घतृण और कौञ्च पक्षी का वाम आवर्त, १४. नेवे का जल तथा १५. बैल, घोडा और वृक्ष से गिरना। इन पन्द्रह दृष्टान्तों में पहला 'निमित्त' का नैमित्तिकों से सम्बन्धित दृष्टान्त इस प्रकार है
१-४. भविष्यवाणी
(निमित्त) किसी नगर में एक सिद्धपुत्र रहता था। उसके पास दो शिष्य थे। वह उन दोनों को निमित्तशास्त्र पढ़ाता था। उन दोनों में एक विनयादि गुणों से युक्त था। वह गुरु के कथन को यथावत् बहुमान पूर्वक स्वीकार करता था। गुरु के पास जो पाठ पढ़ता, उस पर फिर विचार करता और विचार करते हुए उसे जहाँ भी सन्देह होता, तत्काल गुरु के पास जाकर विनयपूर्वक पूछ लेता था। इस प्रकार निरन्तर विनय और विवेकपूर्वक शास्त्र पढ़ते हुए उसकी विनयजन्य बुद्धि अति तीव्र हो गई।
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