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मति ज्ञान - राजकुमार का न्याय
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चलाने लगा। कार्य हो जाने पर शाम को वह बैल लेकर आया और मित्र के बाड़े में छोड़ गया। उस समय उसका मित्र भोजन कर रहा था, इसलिए वह उसके पास नहीं गया। उसने सोचा-मित्र ने बैल को देख लिया है। इसलिए मित्र को बिना कहे ही वह अपने घर चला गया। असावधानी के कारण बैल, बाड़े से निकल कर कहीं चला गया। मौका पाकर चोरों ने उसे चुरा लिया। जब मित्र ने बैल को बाड़े में नहीं देखा, तो वह उस पुण्यहीन से बैल माँगने लगा। वह बैल कहाँ से देता, क्योंकि बैल को तो चोर ले गये थे। दोनों में झगड़ा हुआ और वे न्यायालय की ओर चले। मार्ग में घोड़े पर चढ़ा हुआ एक पुरुष सामने से आ रहा था। अकस्मात् घोड़े के चौंकने से वह गिर पड़ा और घोड़ा भागने लगा। ये दोनों सामने से आ रहे थे, इसलिए उस सवार ने इनसे कहा"घोड़े को जरा मार कर वहीं रोक लेना।" पुण्यहीन ने उसकी बात सुनते ही घोड़े के मर्म-स्थान पर ऐसी चोट मारी कि घोड़ा तत्काल मर गया। अब तो घोड़े वाला भी उस पर मुकदमा चलाने के लिए उसके साथ न्यायालय में जाने लगा। जब तक ये लोग शहर के नजदीक पहुँचे, तब तक सूर्य अस्त हो गया। इसलिए तीनों शहर के बाहर ही ठहर गये। वहां बहुत से नट भी सोये हुए थे। सोया हुआ पुण्यहीन सोचने लगा कि 'इस प्रकार के दुःख से तो गले में फाँसी लगा मर कर जाना ही अच्छा है, जिससे सदा के लिए विपत्तियों से पिण्ड छूट जाये।' ऐसा सोचकर उसने अपने वस्त्र का पाश बनाकर वृक्ष में बाँधा और अपने गले में डाल लिया। वह वस्त्र अत्यन्त जीर्ण था, इसलिए भार पड़ते ही टूट गया और वह पुण्यहीन, नीचे सोये हुए नटों के मुखिया पर धड़ाम से गिर पड़ा। इससे नटों का मुखिया मर गया।
_नटों ने भी उस पुण्यहीन को पकड़ा। सुबह होते ही वे तीनों पुण्य-हीन को लेकर न्यायालय में पहुंचे। राजकुमार ने उस सब की बातें सुनकर पुण्यहीन से पूछा। उसने दीनता के साथ कहा - "महाराज! इन सब का कहना सत्य है।" राजकुमार को उसकी दीनता पर बहुत दया आ गई। राजकुमार ने पुण्यहीन को बतलाने के लिए उसके मित्र को बुला कर कहा - "यह तुम्हें बैल तो देगा, किन्तु तुम्हारी आँखें उखाड़ लेगा, क्योंकि जिस समय तुमने बैल को देख लिया, उसी समय यह ऋण-मुक्त हो चुका था। यदि तुमने बैल को इन आँखों से नहीं देखा होता, तो यह तुम्हें कहे जिना वापिस अपने घर नहीं लौटता इसने तुम्हारे सामने तुम्हारा बैल लाकर छोड़ दिया था। इसलिए यह निर्दोष है।"
फिर घोड़े वाले को बुला कर कहा - "हम तुम्हारा मोटा दिलायेंगे, परन्तु तुम को अपनी जीभ काटकर इसको देनी होगी, क्योंकि तुम्हारे कहने पर ही इसने घोड़े के चोट मारी थी, तुम्हारे बिना कहे नहीं। इसलिए तुम्हारी जीभ ही पहले दोषी होती है। उसको उखाड़ कर अलग कर देना चाहिए।"
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