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१. अभयकुमार की बुद्धि
के राजा श्रेणिक के पास एक राज्य की कुशल चाहते हैं, तो
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मालव देश की उज्जयिनी नगरी में चण्डप्रद्योत राजा राज्य करता था । एक समय उसने राजगृह दूत भेजा और कहलाया कि " यदि राजा श्रेणिक, अपनी और अपने १. उनके अपने बंकचूड हार २. सेचनक गन्धहस्ती ३. अभयकुमार मंत्री और ४. चेलना रानी को मेरे यहाँ भेज दें।" राजगृह में जाकर दूत ने राजा श्रेणिक को अपने राजा. चण्डप्रद्योत की यह विचित्र आज्ञा कह सुनाई। उसे सुनकर राजा श्रेणिक बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने दूत से कहा अपने राजा से कहना कि १. अग्निमुख रथ २: अनलगिरि हाथी ३. वज्रजंघ दूत और ४. शिवा देवी, इन चारों को मेरे यहाँ भेज दें।" उज्जयिनी जाकर दूत ने राजा श्रेणिक की कही हुई बात अपने राजा चण्डप्रद्योत को कही। उसे सुनकर वह अति कुपित हुआ और बड़ी भारी सेना लेकर राजगृह पर चढ़ाई कर दी। नगर के बाहर उसकी सेना का पड़ाव गया। शत्रु का आक्रमण सुनकर श्रेणिक ने भी अपनी सेना को सज्जित होने की आज्ञा दी। तब अभयकुमार ने निवेदन किया- "देव ! आप युद्ध की तैयारी क्यों करते हैं? मैं ऐसा उपाय करूँगा - कि मासा जी (चण्डप्रद्योत ) कल प्रातःकाल स्वयं वापिस लौट जाएंगे।" राजा ने अभयकुमार की बात मान ली।
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नन्दी सूत्र
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'वत्स! मुझे
रात के समय अभयकुमार अपने साथ बहुत सा धन लेकर राजमहल से निकला। उसने चण्डप्रद्योत राजा के सेनापति तथा बड़े-बड़े उमरावों के डेरों के पीछे वह धन गड़वा दिया। फिर वह चण्डप्रद्योत के पास आया और प्रणाम करके कहा " मासाजी ! मेरे लिए तो आप और पिताजी दोनों समान रूप आदरणीय है। अतः मैं आपके हित की बात कहने आया हूँ। किसी के साथ धोखा हो, यह मैं नहीं चाहता।" चण्डप्रद्योत बड़ी उत्सुकता से पूछने लगा शीघ्र बतलाओ कि मेरे साथ क्या धोखा होने वाला है?" अभयकुमार ने कहा "पिताजी ने आपके सेनापति और बड़े- बड़े उमरावों को घूस (रिश्वत) देकर अपने वश में कर लिया है। वे लोग सुबह आपको पकड़वा देंगे। यदि आपको विश्वास नहीं हो, तो मेरे साथ चलिए। उन लोगों के पास आया हुआ धन मैं आपको दिखा देता हूँ।" ऐसा कहकर अभयकुमार, चण्डप्रद्योत को अपने साथ लेकर चला और सेनापति और उमरावों के डेरों के पीछे गड़ा हुआ धन दिखलाया । चण्डप्रद्योत को अभयकुमार की बात पर पूर्ण विश्वास हो गया। वह शीघ्रता के साथ अपने डेरे पर आया और अपने घोड़े पर सवार होकर उसी रात वापिस उज्जयिनी लौट आया। प्रातः काल जब सेनापति और उमरावों को यह पता लगा कि राजा भागकर वापिस उज्जयिनी चला गया है, तो बड़ा आश्चर्य हुआ। 'बिना नायक की सेना क्या कर सकती है' ऐसा सोचकर सेना सहित वे सब लोग
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