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नन्दी सूत्र .......................................................
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इसी प्रकार नटों को बुलाकर कहा - "देखो, इसके पास कुछ भी नहीं है, जो तुमको दण्ड में दिलाया जाये। न्याय इतना ही कहता है कि जैसे यह गले में पाश डालकर वृक्ष से तुम्हारे स्वामी पर गिरा, उसी प्रकार तुम्हारे में से कोई भी पुरुष, वृक्ष से गिरे, यह नीचे सो जायेगा।" राजकुमार की ये बातें सुनकर तीनों ही वादी चुप हो गये। अन्त में पुण्यहीन को मुकदमें से छोड़ दिया। राजकुमार की यह वैनेयिकी बुद्धि थी। ___ इस प्रकार वैनेयिकी बुद्धि के पन्द्रह उदाहरण पूर्ण हुए।
कर्मजा बुद्धि अब सूत्रकार कार्मिकी बुद्धि के लक्षण प्रस्तुत करते हैंउवओगदिट्ठसारा, कम्मपसंगपरिघोलणविसाला। साहुक्कारफलवई, कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी॥७६॥ .
अर्थ - जो बुद्धि, सतत चिंतन के अन्तिम सार रूप हो और निरंतर कर्म के विशाल अनुभव युक्त हो तथा जिससे धन्यवाद के पात्र कार्य कर दिखाये जाये, उसे कार्मिकी बुद्धि कहते हैं।
विवेचन - १. जो बुद्धि काम करने से उत्पन्न होती है, उसे 'कार्मिकी बुद्धि' कहते हैं। २. यह बुद्धि किसी भी विवक्षित कार्य में मन का उपयोग एकाग्र करने से उत्पन्न होती है और कार्य को शीघ्र अल्प परिश्रम से और सुन्दर रूप में सम्पादित करने की कुशलता उत्पन्न करती है। ३. उसके पश्चात् भी ज्यों-ज्यों कार्य अधिक किया जाता है तथा ज्यों-ज्यों उसका उत्तरोत्तर विचार मन्थन होता है, त्यों-त्यों उस बुद्धि में विशालता आती जाती है। ४. कार्मिकी बुद्धि से किये गये कार्य से लोगों में-विद्वानों द्वारा 'साधुवाद' और धनवानों से 'धन लाभ' प्राप्त होता है।
.. कर्मजाबुद्धि के १२ दृष्टान्त अब सूत्रकार कार्मिकी बुद्धि को स्पष्ट समझाने के लिए बारह दृष्टान्तों की संग्रह गाथा प्रस्तुत करते हैं -
हेरण्णिए करिसए, कोलिय डोवे य मुत्ति घय पवए। तुन्नाए वडइ य पूयइ, घड चित्तकारे य॥ ७७॥
अर्थ - १. हैरण्यक - सोनी, २. कृषक-किसान, ३. कोलिक-जुलाहा, ४. दर्वी-लुहार, ५. मौक्तिक-मणिहार, ६. घृत-घी वाला, ७. प्लवक-नट, तैराक, ८. तुन्नवाय-दर्जी, ९. वर्द्धकीबढ़ई, १०. आपूपिक-हलवाई, ११. घटकार-कुंभार और १२. चित्रकार-चितेरा।
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