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मति ज्ञान - संकेत
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किसी समय एक रथिक ने राजा को प्रसन्न करके कोशा की माँग की। राजा ने माँग स्वीकार कर कोशा को रथिक के साथ रहने के लिए नियोग-दबाव डाला, किन्तु जब वह रथिक कोशा के पास पहुंचा, तो वह बार-बार स्थूलभद्र मुनि की स्तुति करने लगी और रथिक की उपेक्षा करती रही। रथिक अपने कला-विज्ञान से उसको प्रसन्न करने के लिए अशोक वाटिका में ले गया। वहाँ उसने पृथ्वी पर खड़े रहकर आम्रवृक्ष के आम्र की मंजरी को अर्द्ध-चन्द्र के आकार से काट डाली। इस पर भी कोशा प्रसन्न नहीं हुई और बोली-“शिक्षित पुरुष के लिए क्या दुष्कर है? देखो, मैं सरसों के ढेर पर सूई में पिरोये हुए कनेर के फूलों पर नाचती हूँ।" ऐसा कह कर उसने सरसों के ढेर पर सूई में पिरोये हुए कनेर के फूलों पर नाच करके दिखलाया। यह देख कर रथिक बहुत चकित हुआ और बार-बार उसकी प्रशंसा करने लगा। इस पर वेश्या ने कहा -
ण दुक्र अंबय-लुंबितोडणं, ण दुक्करं सरिसव-णच्चियाई।
तं दुक्करं तं च महाणुभावं, जं सो मुणी पभयवणभिम वुच्छो। __ अर्थात् - आम की मंजरी को तोड़ना और सरसों के ढेर पर नाचना दुष्कर नहीं है, किन्तु स्त्री समुदाय के बीच रहकर मुनि बने रहना एवं संयम से विचलित नहीं होना ही दुष्कर है। यह दुष्कर, दुष्कर और महादुष्कर है।
यह कहकर कोशा वेश्या ने स्थूलभद्र मुनि का आद्योपान्त वृत्तांत सुनाया, जिसका रथिक पर गहरा प्रभाव पड़ा और वह भी पर-स्त्री गमन का त्याग कर श्रावक बन गया। रथिक और गणिका दोनों की यह विनयजा बुद्धि थी।
१३. संकेत
(भीगी साड़ी) एक कलाचार्य कुछ राजकुमारों को शिक्षण देते थे। इस उपकार के बदले में राजकुमारों ने कलाचार्य को समय-समय पर बहुत-सा धन और बहुमूल्य पदार्थ भेंट किये। जब यह बात राजा को मालूम हुई, तो वह बहुत क्रुद्ध हुआ और उसने कलाचार्य को मरवा देने की इच्छा की। यह बात विनीत राजकुमारों को मालूम हो गई। उन्होंने सोचा कि विद्यादाता कलाचार्य भी हमारे पिता के समान हैं। इन्हें इस विपत्ति से बचाना हमारा कर्तव्य है। थोड़ी देर बाद आचार्य स्नान करने के लिए आये और धोती माँगने लगे। इस पर राजकुमारों ने धोती सूखी होते हुए भी कहा - "धोती गीली है।" तथा दरवाजे पर एक छोटा-सा तृण खड़ा करके कहने लगे-"यह तृण बहुत लम्बा है' क्रोञ्च नामक शिष्य, जो सदा आचार्य की दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा किया करता था, किन्तु वह
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