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केवल ज्ञान का उपसंहार **********************************************************
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केवल ज्ञान का उपसंहार अब सूत्रकार केवलज्ञान का चूलिका द्वार कहते हैं। उसमें केवलज्ञान के विषय में अब तक जो कहा, उसका कुछ संग्रह करते हुए अवधिज्ञान और मनःपर्यव ज्ञान से अन्तर बताते हैं।
अह सव्वदव्वपरिणाम, भावविण्णत्तिकारणमणंतं। सासयमप्पडिवाइ, एगविहं केवलं णाणं॥६६॥
अर्थ - केवलज्ञान, सभी द्रव्यों, उनके सभी गुणों तथा सभी पर्यायों को प्रकट करता है। वह अनंत है, शाश्वत है, अप्रतिपाति है तथा एक ही भेद वाला है।
विवेचन - केवलज्ञान -
१. सभी द्रव्यों और उनके जितने भी परिणाम हैं - पारिणामिक तथा औदयिकादि विस्रसा और प्रयोग जन्य, उत्पाद आदि पर्याय हैं, उनके भाव का, स्वरूप का, अस्तित्व का, विज्ञान कराता है। परिपूर्ण ज्ञान कराता है।
२. अनन्त है - ज्ञेय पदार्थ अनन्त होने से केवलज्ञान अनन्त हैं अथवा जितने ज्ञेयपदार्थ हैं, उनसे अनन्तगुण भी ज्ञेयपदार्थ हों तो भी उनको जानने की क्षमता होने से केवलज्ञान अनंत हैं।
३. शाश्वत है - लब्धि की अपेक्षा प्रतिक्षण स्थायी है, अंतर रहित - निरन्तर विद्यमान रहता है।
४. अप्रतिपाति है - लब्धि की अपेक्षा त्रिकाल स्थायी है, अन्तरहित अनन्तकाल विद्यमान रहता है। ::
५. एक विध है - जघन्य उत्कृष्ट मध्यम आदि भेद रहित है। ६. केवल है - ज्ञानावरणीय कर्म के सम्पूर्ण क्षय से उत्पन्न पूर्ण शुद्ध ज्ञान है।
१.. अवधि और मनःपर्यव दोनों प्रत्यक्ष ज्ञान हैं, परन्तु वे छहों द्रव्यों में मात्र एक रूपी पुद्गल द्रव्य ही जानते हैं और उसकी असर्वपर्यायें (अपूर्ण पर्यायें) जानते हैं, परन्तु केवलज्ञान . सभी मूर्त-अमूर्त द्रव्यों को और उनकी पर्यायों को जानता है।
२. अवधिज्ञान द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव, इन चारों ज्ञेयों की अपेक्षा अवधि' युक्त है और मनःपर्याय ज्ञान तो उससे भी अधिक सीमित अवधि वाला है, परन्तु केवलज्ञान द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-इन चारों ज्ञेयों की अपेक्षा अनन्त है, अवधि रहित है।
३. अवधि और मनःपर्याय ज्ञान - दोनों क्षायोपशमिक होने से अशाश्वत हैं प्रतिक्षण उसी रूप में नहीं रहते, वर्धमान हीयमान आदि हो सकते हैं। केवलज्ञान की उत्पत्ति के पश्चात् ये दोनों क्षायोपशमिक ज्ञान स्थायी नहीं रहते हैं, परन्तु केवलज्ञान क्षायिक होने से शाश्वत प्रतिक्षण स्थायी रहता है।
. ४. अवधि और मनःपर्याय ज्ञान, प्रतिपाति भी हैं और अप्रतिपाति भी हैं, परन्तु केवलज्ञान तो मात्र अप्रतिपाति ही होता हैं।
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