________________
नन्दी सूत्र
५. अवधि और मनः पर्यव, इन दोनों में कई भेद, प्रभेद और उपभेद हैं, परन्तु केवलज्ञान भेद
रहित हैं ।
६. अवधिज्ञान और मनः पर्यायज्ञान क्षायोपशमिक हैं, जिससे उसके साथ कुछ उदय भाव भी रहता है तथा पीछे सम्पूर्ण उदय भाव भी संभव है पर केवलज्ञान में उदय अंशमात्र नहीं होता तथा पीछे भी उदय असंभव है । केवलज्ञान क्षायिक है।
९६
अब सूत्रकार, केवलज्ञानियों में श्रुतज्ञान होने की भ्रांन्ति को दूर करते हैं । केवलणाणेणऽत्थे, णाउं जे तत्थ पण्णवणजोगे ।
***************
ते भासइ तित्थयरो, वह जोगसुयं हवइ सेसं ॥ ६७॥
अर्थ - केवलज्ञान द्वारा (सम्पूर्ण) भावों को जानकर, उनमें जो भाव प्रज्ञापना योग्य होते हैं, उन्हें ही तीर्थंकर प्रकाशित करते हैं। उनकी वाणी शेष श्रुत-द्रव्यश्रुत रूप होती है।
विवेचन - केवलज्ञान से अर्थ (पदार्थ) जानकर, उनमें
प्रज्ञापनीय होते हैं (शब्द से कहे जा सकते हैं, या भाव से कहने योग्य होते हैं) और शिष्य की ग्रहण धारण आदि शक्ति के अनुसार होते हैं, उन्हें ही तीर्थंकर भाषते हैं। वह उनके लिए वचन योग होता है और श्रोताओं के लिए द्रव्यश्रुत होता है ।
'केवलज्ञानी, श्रुतज्ञान को प्रकट करते हैं। इस कारण केवलियों में श्रुतज्ञान होता होगा' ऐसी धारणा बनाना यथार्थ नहीं है, क्योंकि केवलज्ञानी, श्रुतज्ञान से पदार्थ नहीं जानते, वे केवलज्ञान से जानते हैं।
Jain Education International
केवलज्ञानी, केवलज्ञान से जितना जानते हैं, उस ज्ञान का अनन्तवाँ भाग ही शब्द द्वारा प्रकट किया जा सकता है। शेष अनन्त गुण ज्ञान ऐसा है जो शब्द द्वारा प्रकट नहीं किया जा सकता है, क्योंकि अक्षर और अक्षर संयोग सीमित है ।
केवलज्ञान का जितना ज्ञानांश, शब्द द्वारा प्रकट किया जा सकता है, उसका अल्प अंश ही कहने योग्य होता है, अर्थात् भव्यों की आत्मोन्नति के लिए प्रकाशित करने योग्य होता है ।
जितना प्रकाशित करने योग्य होता है, उसका अल्प अंश ही तीर्थंकरादि प्रकाशित कर सकते हैं, क्योंकि प्रकाशित करने योग्य अधिक है और उनकी आयु सीमित होती है।
जितना प्रकाशित कर सकते हैं, उसमें भी उनके समक्ष जैसा पात्र होता है, वह जितना ग्रहण धारण कर सकता है, उतना ही वे प्रकाशित करते हैं। अधिक नहीं ।
तीर्थंकरादि जो प्रकाशित करते हैं, वह उनकी अपेक्षा तो वचनयोग ही होता है। वह उनकी अपेक्षा द्रव्यश्रुत नहीं होता, क्योंकि वह उनके भावश्रुत में कारण नहीं है, केवलियों का भावश्रुत होता ही नहीं है।
For Personal & Private Use Only
-
www.jainelibrary.org