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मति ज्ञान - दबाई हुई धरोहर निकलवाना
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महुसित्थ मुद्दि अंके य, णाणए भिक्खु चेडगणिहाणे। सिक्खा य अत्थसत्थे, इच्छा य महं सयसहस्से॥७२॥
अर्थ - (१८) मधु का छत्ता, (१९) मुद्रिका, (२०) अंक, (२१) नाणक, (२२) भिक्षु, (२३) चेटक-बालक और निधान, (२४) शिक्षा, (२५) अर्थशास्त्र, (२६) 'जो इच्छा हो वह मुझे देना' और (२७) एक लाख।
१८. शहद का छत्ता
(मधु सित्थ) एक नदी के दोनों किनारों पर धीवर (मछुए) लोग रहते थे। उनमें जातीय सम्बन्ध होने पर भी आपस में मन-मुटाव था। इसलिए उन्होंने अपनी स्त्रियों को विरोधी पक्ष वाले किनारे पर जाने के लिए मना कर दिया था। किन्तु जब धीवर लोग काम पर चले जाते थे, तब स्त्रियाँ दूसरे किनारे पर आया-जाया करती थीं और आपस में मिला करती थीं। एक दिन धीवर की स्त्री दूसरे किनारे पर गई हुई थी। उसने वहाँ से अपने घर के पास कुन्ज में एक मधुछत्र (शहद से भरा हुआ मधुमक्खियों का छत्ता) देखा। - कुछ दिन बाद उस स्त्री के पति को औषधि के लिए शहद की आवश्यकता हुई। वह शहद खरीदने के लिए बाजार जाने लगा, तो उसकी स्त्री ने कहा-"बाजार से शहद क्यों खरीदते हो? अपने घर के पास ही मधुछत्र हैं। चलो, मैं तुम्हें दिखाती हूँ।" यह कह कर वह अपने पति को साथ लेकर मधुछत्र दिखाने गई, किन्तु इधर-उधर बहुत ढूंढने पर भी मधुछत्र दिखाई नहीं दिया। तब स्त्री ने कहा-"उस किनारे से बराबर दिखाई देता है। चलो, वहाँ चले। वहाँ से मैं तुम्हें जरूर दिखा दूंगी।" यह कहकर वह अपने पति को साथ लेकर दूसरे किनारे पर आई और वहाँ अपने विरोधी धीवर के घर के पास खड़ी रह कर उसने मधुछत्र दिखा दिया। इससे धीवर ने सहज ही समझ लिया कि-मना करने पर भी मेरी स्त्री दूसरे किनारे पर निषिद्ध घर में आती-जाती है। धीवर की यह औत्पत्तिकी बुद्धि थी।
१९. दबाई हुई धरोहर निकलवाना
(मुद्रिका) किसी नगर में एक पुरोहित रहता था। लोग उसका बहुत विश्वास करते थे। लोगों में वह
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