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मति ज्ञान - रोहक का माता से बदला
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हो, वह 'औत्पत्तिकी बुद्धि' है। उसके द्वारा १. जिसे पहले कभी घटित होते हुए आँख से देखा नहीं, २. कभी किसी जानकार से उस विषय में कुछ सुना भी नहीं और ३. मन से भी कभी उस विषय पर विचार नहीं किया। वह विषय भी तत्क्षण-बिना विलम्ब के तत्काल, समझ में आ जाता है और वह भी विशुद्ध रूप में समझ में आ जाता है।
औत्पत्तिकी बुद्धि से जो काम किया जाता है, उसकी सफलता में कभी बाधा नहीं आती। यदि आ भी जाय, तो बाधा नष्ट हो जाती है और काम में सफलता जुड़ कर रहती है।
औत्पत्तिकी बुद्धि के २७ दृष्टान्त अब सूत्रकार औत्पत्तिकी बुद्धि किसे कहते हैं ? - यह सरलता से समझ में आ जाय, अतएव औत्पत्तिकी बुद्धि विषयक २७ दृष्टांत प्रस्तुत करते हैं -
भरहसिल पणिय रुक्खे, खुड्डग पड सरड काय उच्चारे। गय घयण गोल खंभे, खुड्डुग मग्गि त्थि पइ पुत्ते॥७०॥
अर्थ - १. भरत शिला २. पणित-होड़ ३. वृक्ष ४. खुड्डग-अंगूठी ५. पट-वस्त्र ६. शरटगिरगिट ७. काक ८. उच्चार - विष्ठा ९. गज १०. घयण - भाण्ड ११. गोल १२. स्तंभ १३. क्षुल्लक-बाल परिवाज्रक १४. मार्ग, १५. स्त्री १६. पति १७. पुत्र।
अब सूत्रकार उनका संग्रह करने वाली गाथा कहते हैं - भरहसिल मिंढ कुक्कुड तिल वालुय हत्थि अगड वणसंडे। पायस अइया पत्ते, खाडलिया पंच पिअरो य॥७१॥
अर्थ - १. भरतपुत्र रोहक २. शिला ३. मेढ़ा ४. कुर्कुट ५. तिल ६. बालुका ७. हस्ति ८. अगड-कुआँ ९. वनखण्ड १०. पायस-खीर ११. अतिग-विलक्षण प्रस्थान या १२. अजिकाबकरी १३. पत्र १४. गिलहरी और १५. पांच पिता। ये कथाएं इस प्रकार हैं - . .
रोहक की बुद्धिमत्ता के १५ दृष्टान्त
१. रोहक का माता से बदला लेना उज्जयिनी नगरी के पास नटों का एक गाँव था। उसमें भरत नाम का एक नट रहता था। वह अपनी पत्नी के साथ आनंद पूर्वक समय व्यतीत करता था। कुछ समय के बाद उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम रोहक रक्खा गया। जब रोहक छोटा ही था तभी उसकी माता का देहान्त
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