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मति ज्ञान - न्यायाध्यक्ष का निर्णय
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. १३. क्षुल्लक की विजय
(क्षुल्लक) किसी नगर में एक परिव्राजिका रहती थी। वह प्रत्येक कार्य में बड़ी कुशल थी। एक समय उसने राजा के सामने प्रतिज्ञा की कि - "देव! जो काम दूसरे कर सकते हैं वे सभी काम मैं कर सकती हैं। कोई काम ऐसा नहीं-जो मेरे लिए अशक्य हो।"
राजा ने नगर में परिव्राजिका की प्रतिज्ञा का सामना करने के सम्बन्ध में घोषणा करवा दी। नगर में भिक्षा के लिए घूमते हुए एक क्षुल्लक-छोटी उम्र के भिक्षु ने यह घोषणा सुनी। उसने राजपुरुषों से कहा - "मैं अपनी कला से परिव्राजिका को सामना करके हरा दूंगा।" राजपुरुषों ने घोषणा बन्द कर दी और लौट कर राजा से निवेदन किया।
- निश्चित समय पर क्षुल्लक भिक्षु राजसभा में उपस्थित हुआ। उसे देख कर मुँह बनाती हुई परिव्राजिका अवज्ञा पूर्वक कहने लगी कि "यह क्षुल्लक छोटा बच्चा मुझे क्या जीतेगा?" परिव्राजिका के ऐसा कहने पर क्षुल्लक ने अपनी लंगोटी हटाकर नग्नमुद्रा से अनेक आसन कर दिखाये। फिर परिव्राजिका से बोला कि "अब आप अपनी कुशलता दिखलाइये।" परिव्राजिका ऐसा नहीं कर सकी। इसके बाद क्षुल्लक ने लिंग संचालन से इस प्रकार पेशाब किया कि कमलाकार चित्र बन गया। परिव्राजिका ऐसा करने में भी असमर्थ रही। इस प्रकार परिव्राजिका हार गई और वह लज्जित होकर राजसभा से चली गई। क्षुल्लक की यह औत्पत्तिकी बुद्धि थी।
१४. न्यायाध्यक्ष का निर्णय
(मार्ग) - एक पुरुष अपनी स्त्री को साथ ले रथ में बैठ कर दूसरे गांव जा रहा था। रास्ते में स्त्री को शारीरिक चिंता हुई। इसलिए वह रथ से नीचे उतर कर कुछ दूर जाकर शंका निवारण करने लगी।। वहाँ व्यन्तर जाति की एक देवी रहती थी। वह पुरुष के रूप सौन्दर्य को देख कर आसक्त हो गई। उसने तत्काल उसी स्त्री का रूप बना लिया और आकर पुरुष के पास रथ में बैठ गई। जब उसकी पत्नी शारीरिक चिंता से निवृत्त होकर रथ की ओर आने लगी, तो उसने अपने पति के पास अपने ही समान रूप वाली दूसरी स्त्री बैठी देखी। स्त्री को आती हुई देखकर व्यन्तरी ने पुरुष से कहा - "यह कोई व्यन्तरी मेरे सरीखा रूप बनाकर तुम्हारे पास आना चाहती है, इसलिए रथ को जल्दी चलाओ।" व्यंतरी के कथनानुसार पुरुष रथ को जल्दी चलाने लगा। इधर वह स्त्री रोती चिल्लाती
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