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नन्दी सूत्र
की उपशम योग्य निवत्त व्याधि निश्चय ही चली जायेगी और भविष्य में छह मास से पहले कोई व्याधि नहीं होगी ।" यह कहकर देव चला गया।
श्रीकृष्ण ने वह भेरी, अपने भेरी बजाने वाले को दी और देव- प्रदत्त सूचना से उसे अवगत करा दिया।
दूसरे दिन श्रीकृष्ण सहस्रों राजा आदि से युक्त राज सभा में बैठे हुए थे, तब वह भेरी बजाई गयी । भेरी का नाद सुनते ही नगरी के समस्त रोगियों का रोग उसी प्रकार नष्ट हो गया, जिस प्रकार सूर्य की किरणों से अन्धकार नष्ट हो जाता है। रोगमुक्त होकर सभी द्वारिकावासियों ने श्रीकृष्ण को बारंबार 'भद्रं भद्रं' आशीर्वाद दिया ।
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एक समय की बात है - किसी दूर देशान्तर में एक महान् धनाढ्य पुरुष रहता था। उसके शरीर में कोई असाध्य व्याधि उत्पन्न हो गयी थी । उसने बहुत से उपचार कराये, पर कोई फल नहीं निकला। किसी जानकार पुरुष ने उसे कहा कि - "तुम द्वारिका जाओ। वहाँ सर्व रोग शामक भेरी बजती है। उससे तुम्हारा रोग नष्ट हो जायेगा ।" यह सुनकर वह द्वारिका पहुँचा, परन्तु दैव-योग से वह एक दिन बाद पहुँचा। उसके पहुँचने के एक दिन पहले ही भेरी बज चुकी थी। उसने सोचा'अब मैं कैसे जीवित रहूँगा ? क्योंकि अब फिर से छह मास के पश्चात् भेरी बजेगी, तब तक तो यह व्याधि बढ़ कर मेरे प्राणों का नाश ही कर देगी।' यह सोचते-सोचते वह चिन्ता सागर में डूब गया। अचानक उसे विचार स्फुरित हुआ कि - 'जब इस भेरी के शब्द मात्र से व्याधि दूर हो जाती है, तो उसके कुछ भाग को घिस कर पी लेने से रोग अवश्य ही नष्ट हो जायेगा। मेरे पास धन बहुत है, अतः धन का प्रलोभन देकर मुझे उस भेरी का एक भाग अवश्य प्राप्त कर लेना चाहिए।' यह सोच कर उसने भेरी बजाने वाले को विपुल धन से प्रलोभित किया । जिस प्रकार दुष्ट स्त्रियों को निरन्तर धन आदि से सम्मानित किया जाये, तो भी वे अपने स्वामी को छोड़कर परपुरुषों से अधिक धनादि मिलने पर व्यभिचार करती हैं, वैसे ही उस भेरी बजाने वाले को, उसके स्वामी श्रीकृष्ण से धनादि बहुत प्राप्त होता था, फिर भी उसने विपुल धन के प्रलोभन में आकर उस भेरी का एक भाग काट कर उस धनिक को दे दिया एवं उसके स्थान पर अन्य चन्दन का खण्ड लगा दिया। इसी प्रकार भविष्य में परम्परा में अन्य अन्य देशों से आये हुए, नाना रोगियों को वह धन - लुब्ध बनकर भेरी का एक-एक भाग काट कर देता रहा तथा उसके स्थान पर नया खण्ड जोड़ता रहा। यों खण्ड-खण्ड देते हुए तथा खण्ड-खण्ड जोड़ते हुए वह भेरी कालांतर से कन्था के समान चन्दन - खण्ड की सहस्रों जोड़ वाली बन गई। जिससे उसमें रहा हुआ दिव्य प्रभाव क्षीण होता-होता नष्ट हो गया और पहले नगरी में जिस रोग का उपद्रव चल रहा था, वह पुनः उदय में आकर फैल गया।
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