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नन्दी सूत्र
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अर्थ - प्रश्न - वह सयोगी भवस्थ केवलज्ञान क्या है ?
उत्तर - सयोगी भवस्थ केवलज्ञान के दो भेद हैं - १. प्रथम समय की सयोगी भवस्थ अवस्था का केवलज्ञान और २. अप्रथम समय की सयोगी भवस्थ अवस्था का केवलज्ञान। अथवा१. चरम समय की सयोगी भवस्थ अवस्था का केवलज्ञान तथा २. अचरम समय की संयोगी भवस्थ अवस्था का केवलज्ञान। ये सयोगी भवस्थ केवलज्ञान के भेद हुए।
विवेचन - १. प्रथम समय सयोगी भवस्थ केवलज्ञान-जिन्हें चार घाति कर्म क्षय किये पहला समय है, ऐसे सयोगी मनष्य भव में रहे हए संसारस्थ केवलियों का केवलज्ञान और २. अप्रथम समय सयोगी भवस्थ केवलज्ञान-जिन्हें चार घाति-कर्म क्षय किये पहला समय बीत गया है, ऐसे दूसरे समय से लेकर चरम समयवर्ती सभी सयोगी मनुष्य भव में रहे हुए संसारस्थ केवलियों का केवलज्ञान। अथवा - १. चरम समय सयोगी भवस्थ केवलज्ञान-जिनकी सयोगी अवस्था का वर्तमान समय अन्तिम समय है, ऐसे मनुष्य भव में रहे हुए संसारी केवलियों का केवलज्ञान और २. अचरम समय सयोगी भवस्थ केवलज्ञान-जिनकी सयोगी अवस्था का वर्तमान समय में अन्तिम समय नहीं आया है ऐसे उपान्त समय से लेकर प्रथम समयवर्ती सभी मनुष्य भव में रहे हुए संसारी केवलियों का केवलज्ञान।
चार घाति-कर्मों का जिस समय क्षय अर्थात् सर्वांश निर्जरा हो रही होती है, उससे अनंतर दूसरे समय में मनुष्य को केवलज्ञान उत्पन्न होता है। चार घाति-कर्मों के क्षय का समय और केवलज्ञान की उत्पत्ति का समय, दोनों का समय अनंतर ही है।
___ चार घाति-कर्म क्षय से अनंतर का जो पहला समय है, उस समय तो केवलज्ञान उत्पन्न होकर विद्यमान रहता ही है, पश्चात् दूसरे तीसरे आदि समय में भी विद्यमान रहता है अथवा
ती अवस्था का अन्तिम समय आ जाये, तो भी विद्यमान रहता है और उसमें दो, तीन आदि समय शेष हों, तो भी विद्यमान रहता है। यह सयोगी भवस्थ केवलज्ञान है।
से किं तं अजोगिभवत्थकेवलणाणं? अजोगिभवत्थकेवलणाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहा-पढमसमय अजोगिभवत्थकेवलणाणं च अपढमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणं च अहवा चरमसमय अजोगिभवत्थकेवलणाणं च अचरमसमयअजोगिभवत्थकेवलणाणं च। से त्तं अजोगिभवत्थकेवलणाणं। से त्तं भवत्थकेवलणाणं॥ १९॥
अर्थ - प्रश्न - वह अयोगी भवस्थ केवलज्ञान क्या है?
उत्तर - अयोगी भवस्थ केवलज्ञान के दो भेद हैं - १. प्रथम समय की अयोगी भवस्थ अवस्था का केवलज्ञान तथा २. अप्रथम समय की अयोगी भवस्थ अवस्था का केवलज्ञान। अथवा
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