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नन्दी सूत्र
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वाला, साधिक मास (एक मास से अधिक) जानता है। ११. मनुष्य लोक (४५ लाख योजन) जानने वाला, एक वर्ष जानता है। १२. रूचक द्वीप (पन्द्रहवाँ द्वीप) जानने वाला, वर्ष पृथक्त्त- . अनेक वर्ष (पाठान्तर से एक सहस्र वर्ष) जानता है।
संखिजम्मि उ काले, दीवसमुद्दावि हुंति संखिजा। कालम्मि असंखिजे, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा॥६०॥
१३. संख्यात द्वीप समुद्र जानने वाला, कोई संख्यात काल जानता है और कोई असंख्यात काल जानता है। (संख्यातकाल जानने वाला, कम द्वीप समुद्र जानता है और असंख्यात काल जानने वाला, अधिक द्वीप समुद्र जानता हैं) १४. जो असंख्यात द्वीप समुद्र जानता है, वह नियम से । असंख्यातकाल जानता है। (पल्योपम का असंख्यातवां भाग जानता है और द्रव्य से भाषावर्गणा के सूक्ष्म अगुरुलघु द्रव्य तक भी जानता है।)
विशेष - लोक का एक संख्यातवां भाग जानने वाला, पल्योपम का एक संख्यातवां भाग .. जानता है और द्रव्य से मनोवर्गणा के अगुरुलघु द्रव्य तक भी जानता है। लोक के अनेक संख्यातवें भाग जानने वाला, पल्योपम के अनेक संख्यातवें भाग जानता है और द्रव्य से कार्मण-वर्गणा के । अगुरुलघु द्रव्य तक भी जानता है। सम्पूर्ण लोक जानने वाला देशोन (कुछ कम) पल्योपमकाल जानता है। इति वृद्धि अवधि प्ररूपणा।
...अभी यह बताया गया कि 'अवधिज्ञान में इतने क्षेत्र की वृद्धि होने पर इतने काल की वृद्धि होती है, तो क्या क्षेत्र वृद्धि में काल वृद्धि नियम से होती है अथवा भजना (विकल्प) से होती है? इसी प्रकार काल, द्रव्य और पर्यव वृद्धि में किसकी वृद्धि नियम से होती है और किसकी विकल्प से होती है? इसका समाधान सूत्रकार प्रस्तुत करते हैं -
काले चउण्हवुड्डी, कालो भइयव्वु खित्तवुड्डीए। वुड्डीए दव्वपजव, भइयव्वा खित्तकाला उ॥ ६१॥
काल में चारों की वृद्धि होती है अर्थात् जब अवधिज्ञान में काल विषयक ज्ञान की वृद्धि होती है, तब नियम से - १. काल विषयक, २. क्षेत्र विषयक, ३. द्रव्य विषयक और ४. पर्यव विषयक ज्ञान की वृद्धि होती है।
. क्षेत्र वृद्धि में काल वृद्धि भजनीय है अर्थात् जब अवधिज्ञान में क्षेत्र विषयक ज्ञान की वृद्धि होती है, तब काल विषयक ज्ञान की वृद्धि कभी होती है और कभी नहीं होती, पर द्रव्य विषयक ज्ञान की और पर्यव विषयक ज्ञान की नियम से वृद्धि होती है।
द्रव्य वृद्धि में क्षेत्र और काल की वृद्धि भजनीय है। अर्थात् जब अवधिज्ञान में द्रव्य विषयक
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