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नन्दी सूत्र
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औदारिक २. वैक्रिय ३. आहारक और ४. तैजस ये चार वर्गणाएँ गुरुलघु हैं-तथा १. भाषा २. मन एवं ३. कार्मण ये तीन वर्गणा अगुरुलघु हैं। ये सभी वर्गणाएँ क्रम से उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं। . ____जघन्य अवधिज्ञान वाला तैजस के उत्तरवर्ती, तैजस के अयोग्य सूक्ष्म गुरुलघु द्रव्य जानता है . या भाषावर्गणा के पूर्ववर्ती भाषा के अयोग्य अगुरुलघु द्रव्य जानता है।
पर्याय की अपेक्षा जघन्य अवधिज्ञान वाला, प्रत्येक द्रव्य की मात्र चार पर्याय जानता है। अनन्त द्रव्यों की, प्रति द्रव्य एक वर्ण की, एक गंध की, एक रस की, एक स्पर्श की-यों चार पर्याय की गणना से सब अनन्त पर्याय जानता है। इति जघन्य अवधिक्षेत्र प्ररूपणा।
। किसी के अवधिज्ञान की वृद्धि, उत्कृष्ट अवधि क्षेत्र तक भी होती है। अतएव अब सूत्रकार वर्द्धमान अवधिज्ञान के स्वरूप वर्णन के प्रसंग में उत्कृष्ट-परम अवधि क्षेत्र बतलाते हैं। ...
सव्वबहु अगणिजीवा, णिरंतरं जत्तियं भरिजंसु। खित्तं सव्वदिसागं परमोही खेत्तणिद्दिट्ठो॥५६॥ प्रश्न - वह उत्कृष्ट अवधि क्षेत्र क्या है?
उत्तर - सभी सूक्ष्म बादर अग्निकाय जीवों के कुल आत्मप्रदेश, एक-एक कर यदि निरन्तर आकाश प्रदेशों पर रक्खे जायें, तो जितना क्षेत्र रुकेगा, उतना ही क्षेत्र अवधिज्ञान का 'उत्कृष्ट विषय क्षेत्र' है
विवेचन - उत्कृष्ट अवधिज्ञान वाला अपने उस उत्कृष्ट अवधिज्ञान से जितना क्षेत्र जानता है, उतने क्षेत्र को 'उत्कृष्ट अवधि क्षेत्र' कहते हैं।
उत्कृष्ट अवधिज्ञान वाला, समस्त लोक और अलोक में लोकप्रमाण असंख्य खण्ड क्षेत्र जानता है। "अलोक में, अवधिज्ञान में दृश्य कोई रूपी पदार्थ नहीं है, अतएव अवधिज्ञानी अलोक में लोकप्रमाण असंख्य खण्ड क्षेत्र जानता है" - यह कथन सामर्थ्य मात्र की अपेक्षा समझना चाहिए।
उपमान - अग्निकाय के जीव सूक्ष्म और बादर के रूप में अधिक से अधिक जितने उत्पन्न हो सकते हैं, उतने कभी उत्पन्न हुए हों, उस समय यदि असत् कल्पना से उन जीवों को उत्कृष्ट अवधिज्ञानी के शरीर से आरम्भ करके पूर्व दिशा में उनके अपने-अपने शरीर परिमित क्षेत्र में उन्हें सूचि (सूई) के आकार स्थापित किये गये हों, फिर वह सूचि जो लोक और अलोक में पूर्व
और अलोक में पूर्व दिशा में असंख्य योजनों तक गयी है, उसे सभी दिशाओं में सब ओर घुमाई गई हो, तो उस सूचि से जितना क्षेत्र स्पृष्ट होगा, उतना क्षेत्र 'उत्कृष्ट अवधि क्षेत्र' है।
संस्थान - अवधिज्ञान के इस उत्कृष्ट क्षेत्र का संस्थान लड्डु के समान सभी दिशाओं में घनवृत्त समझना चाहिए, क्योंकि पूर्वोक्त सूचि से स्पृष्ट क्षेत्र घनवृत्त होता है। विशेष यह है कि ऊपर नीचे में परमावधिज्ञानी के शरीर प्रमाण ऊँचाई नीचाई अधिक है।
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