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हीयमान अवधिज्ञान ****************************
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उत्तर - अध्यवसायों - विचारों के अप्रशस्त होने पर तथा उनमें मलिनता आते रहने पर एवं पर्यायों की अपेक्षा चारित्र घटता हुआ होने पर तथा उसमें मलिनता आते रहने पर सभी ओर से अवधिज्ञान की हानि होती है। यह हीयमान अवधिज्ञान है।
विवेचन - 'हीयमान' का अर्थ है-'घटता हुआ'। अतएव जो अवधिज्ञान पूर्व अवस्था की अपेक्षा वर्तमान अवस्था में उत्तरोत्तर हीन हो रहा हो, उसे 'हीयमान अवधिज्ञान' कहते हैं।
स्वामी - जिसके पूर्व अवस्था की अपेक्षा वर्तमान अवस्था में उत्तरोत्तर संक्लिष्ट - अप्रशस्त अध्यवसाय चल रहे हों तथा जिसके अवधिज्ञानावरणीय कर्म की मलिनता बढ़ रही हो, उस अविरत सम्यग्दृष्टि के अवधिज्ञान की हानि होती है। ___अथवा जिसके पूर्व अवस्था की अपेक्षा वर्तमान अवस्था में उत्तरोत्तर संक्लिष्ट अध्यवसाय वाले चारित्र परिणाम चल रहे हों तथा जिसके चारित्रमोहनीय और अवधिज्ञानावरणीय कर्म में मलिनता बढ़ रही हो, उस सर्व-विरत साधु के या श्रावक के अवधिज्ञान की हानि होती है।
- संक्लिष्ट अध्यवसाय - कृष्ण, नील और कापोत, इन तीन अशुभ लेश्याओं से रंगे हए चित्त को 'संक्लिष्ट अध्यवसाय' कहते हैं।
- दृष्टांत - जैसे विपुल ईंधन और वायु को पाकर पूर्व में प्रज्वलित बनी हुई अग्नि की ज्वालाएं, पीछे ईंधन और वायु की अल्पता से पूर्व की अपेक्षा उत्तरोत्तर घटती हैं, वैसे ही प्रशस्त अध्यवसाय आदि रूप ईंधन और वायु को पाकर प्रज्वलित हुई अवधिज्ञान रूप ज्वालाएं उत्तरोत्तर संक्लिष्ट अध्यवसाय आदि रूप ईंधन और वायु की अल्पता से, पूर्व अवस्था की अपेक्षा वर्तमान अवस्था में उत्तरोत्तर हानि पाती हैं। .
- हानि का प्रकार - संक्लिष्ट अध्यवसाय तथा अवधिज्ञानावरणीय की मलिनता आदि की न्यूनता अधिकता के अनुसार किसी अवधिज्ञानी का अवधिज्ञान, एक दिशा में ही घटता है, किसी का अनेक दिशा में घटता है और किसी का सभी दिशाओं में, सभी ओर से घटता है। ___ अथवा किसी का अवधिज्ञान - १. पर्यव के विषय में २. किसी का पर्यव और द्रव्य के विषय में ३. किसी का पर्यव, द्रव्य और क्षेत्र के विषय में और ४. किसी का पर्यव, द्रव्य, क्षेत्र और काल-इन चारों के विषय में घटता है। ,
अवधिज्ञान के हानि क्षेत्र की मर्यादा - जो उत्कृष्ट अवधि क्षेत्र देखते हैं और जो उससे उतरते-उतरते अलोक का एक भी आकाश प्रदेश तक देखने की शक्ति रखते हैं, उनका अवधिज्ञान कभी भी हीयमान नहीं होता है। जो जघन्य अवधिक्षेत्र देखते हैं, उनका अवधिज्ञान भी हीयमान नहीं होता, क्योंकि सर्व जघन्य में हानि हो ही नहीं सकती है। इससे मध्य के जो जघन्य अंगुल के । असंख्येय भाग से लेकर यावत लोक तक जानते हैं, उनमें से किसी का अवधिज्ञान हीयमान भी
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