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नन्दी सूत्र
भाग में द्रव्यमन की कैसी पर्यायें रहीं और बीतने वाले पल्योपम के असंख्येय भाग में द्रव्यमन की कैसी पर्यायें रहेंगी-यह प्रत्यक्ष जानते हैं और उस पर अनुमान लगा कर बीते हुए पल्योपम के असंख्येय भाग में उक्त क्षेत्र में किसी संज्ञी तिर्यंच मनुष्यों देवगति के जीव के कैसे मनोभाव रहे और बीतने वाले पल्योपम के असंख्येय भाग में कैसे मनोभाव रहेंगे, यह.परोक्ष देखते हैं।
जिन ऋजुमति मनःपर्यवज्ञानियों को उत्कृष्ट ऋजुमति मनःपर्याय ज्ञान हैं, वे भी इतने ही काल आगे पीछे के मनोभावों को जानते हैं। परन्तु जघन्य ऋजुमति मन:पर्याय ज्ञान वाले जिस पल्योपम का असंख्येय भाग देखते हैं, वह बहुत छोटा समझना चाहिए। संभव है वह आवलिका का असंख्यातवां भाग ही हो, क्योंकि 'क्षेत्र से अंगुल का असंख्यातवां भाग जानते हैं' ऐसा कहा है तथा उत्कृष्ट ऋजुमति मनःपर्याय ज्ञान वाले जिस पल्योपम के असंख्येय भाग को जानते हैं, वह बहुत बड़ा समझना चाहिए, क्योंकि उसमें असंख्येय वर्ष हैं। जिन मन:पर्यवज्ञानियों को मध्यम ऋजुमति मनःपर्यायज्ञान है, वे जघन्य ऋजुमति मनःपर्यायज्ञान की अपेक्षा कोई १. असंख्येय भाग अधिक काल, कोई २. संख्येय भाग अधिक काल, कोई ३. संख्येय गुण अधिक काल और कोई ४. असंख्येय गुण अधिक काल जानते हैं।
४. भावओ णं उज्जुमई अणंते भावे जाणइ पासइ, सव्वभावाणं अणंतभागं जाणइ पासइ, तं चेव विउलमई अब्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ।
अर्थ - भाव से ऋजुमति अनन्त भावों को जानते देखते हैं, सर्वभावों के अनन्तवें भाग को जानते देखते हैं। उन्हीं को विपुलमति अधिकतर, विपुलतर, विशुद्धतर और वितिमिरतर जानते देखते हैं।
विवेचन - जिन मन:पर्यवज्ञानियों को जघन्य ऋजुमति मनःपर्यायज्ञान है, वे अपने जघन्य ऋजुमति मनःपर्याय से द्रव्य मन के प्रत्येक स्कन्ध के संख्य पर्याय ही जानते हैं, पर अनन्त मनोद्रव्य स्कन्ध जानते हैं, उसकी अपेक्षा अनन्त पर्यायें जानते हैं। वे पर्यायें, उत्कृष्ट ऋजुमति मनः पर्याय ज्ञानी जितनी पर्यायें जानते हैं, उसकी अपेक्षा अनन्तवें भाग मात्र हैं।
. जो मनःपर्यवज्ञानी, उत्कृष्ट ऋजुमति मन:पर्यायज्ञानी हैं, वे अपने उस ज्ञान के द्वारा द्रव्य-मन के प्रत्येक स्कन्ध की असंख्य पर्यायें जानते हैं, परन्तु द्रव्य मन के अनन्त स्कन्ध जानते हैं, उनकी अपेक्षा अनन्त पर्यायें जानते हैं। वे पर्यादें जघन्य ऋजुमति से जितनी जानी जाती हैं, उनकी अपेक्षा तो अनंतगुण हैं, परन्तु द्रव्यमन की जितनी पर्यायें होती हैं, उनका अनंतवाँ भाग मात्र जानते हैं, क्योंकि वे प्रत्येक मनोद्रव्य स्कन्ध की वर्तमान अनन्त पर्यायों को और त्रैकालिक अनंत पर्यायों को नहीं जानते। मात्र कुछ काल की असंख्येय पर्यायें ही जानते हैं।
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