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वर्द्धमान अवधिज्ञान
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ज्ञान की वृद्धि होती है, तब क्षेत्र विषयक ज्ञान की वृद्धि कभी होती है और कभी नहीं होती। यदि: क्षेत्र विषयक ज्ञान की वृद्धि होती है, तो काल विषयक ज्ञान की वृद्धि कभी होती है और कभी नहीं होती, पर द्रव्य विषयक ज्ञान की वृद्धि में पर्याय विषयक ज्ञान की वृद्धि नियम से होती है। -
पर्यव वृद्धि में भी क्षेत्र और काल वृद्धि भजनीय है। अर्थात् अवधिज्ञान में पर्यव विषय ज्ञान की वृद्धि होती है तब द्रव्य विषयक ज्ञान की वृद्धि कभी होती है, कभी नहीं होती। जब होती है, तब क्षेत्र विषयक ज्ञान की वृद्धि कभी होती है, कभी नहीं होती, जब होती है, तब काल विषयक ज्ञान की वृद्धि कभी होती है और कभी नहीं होती। . ___अवधिज्ञान की वृद्धि में किसी विषय में ज्ञान की वृद्धि होने पर किसी अन्य विषय में ज्ञान की वृद्धि नियम से क्यों होती है ? और किसी विषय में ज्ञान की वृद्धि भजना से (विकल्प से) क्यों होती है? अब सूत्रकार इसका कारण बतलाते हैं - . सुहुमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरं हवइ खित्तं।।
अर्थ - काल सक्ष्म होता है और काल से भी क्षेत्र अधिक सूक्ष्म होता है।
विवेचन - काल से क्षेत्र अधिक (असंख्य गुण) सूक्ष्म होता है। क्षेत्र से भी द्रव्य अधिक (अनंत गुण) सूक्ष्म होता है और द्रव्य से पर्यव अधिक (अनंतगुण) सूक्ष्म होता है।
पर्यव से द्रव्य कम सूक्ष्म होता है। द्रव्य से क्षेत्र कम सूक्ष्म होता है और क्षेत्र से काल कम सूक्ष्म होता है।
काल, क्षेत्र, द्रव्य और भाव-इन चारों में इस प्रकार अगले-अगले में अधिक सूक्ष्मता का होना और पिछले पिछले में कम सूक्ष्मता होना, यही अवधिज्ञान की वृद्धि में (किसी विषय के ज्ञान की नियम से वृद्धि होने का और किसी विषय के ज्ञान की भजना से वृद्धि होने का) कारण है।
अब सूत्रकार कौन, किससे और क्यों अधिक सूक्ष्म है? यह बताते हैंअंगुलसेढीमित्ते, ओसप्पिणिओ असंखिज्जा ॥६२॥ अर्थ - 'अंगुल श्रेणी मात्र में असंख्य उत्सर्पिणियाँ होती हैं।
विवेचन - १. काल सबसे सूक्ष्म है। इसका प्रमाण यह है कि यदि कोई पुरुष कमल के सौ पत्तों को एक के ऊपर एक रखते हुए जमावे। फिर जिसका अग्रभाग अत्यन्त तीक्ष्ण हो, ऐसे किसी शस्त्र के द्वारा कुशलता और बलपूर्वक उन पत्तों को छेदे, तो ऐसा लगेगा कि मानों वे सभी पत्र एक साथ एक समय में ही छिद गये। किन्तु वह भ्रान्ति है। यदि विचार करें, तो स्पष्ट होगा कि वे कमल के पत्ते प्रत्येक भिन्न-भिन्न काल में छेदे गये। यह तो हमारी बात हुई, यदि केवलियों के ज्ञान की अपेक्षा विचार किया जाये, तो उनमें से एक-एक कमल के पत्ते के छिदने में भी असंख्य-असंख्य समय लगे हैं। काल का सबसे छोटा विभाग-'समय' इतना सूक्ष्म है। .
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