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इन्द्रिय प्रत्यक्ष
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उत्तर - इंद्रिय प्रत्यक्ष के पाँच भेद हैं - १. श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष २. चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष ३. घ्राणेन्द्रिय प्रत्यक्ष ४. जिहेन्द्रिय प्रत्यक्ष तथा ५. स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष। ये इंद्रिय प्रत्यक्ष के भेद हए।
विवेचन - किसी से सने बिना. कहीं पढे बिना और किसी चिह्न संकेत आदि से अनुमान किये बिना, अपनी इन्द्रिय से पदार्थ विशेष को जानना-'इन्द्रिय प्रत्यक्ष' है।
जैसे - पर्वत की गुफा में रही अग्नि को अपनी आँख से देखना-इन्द्रिय प्रत्यक्ष है। यदि किसी ने कहा कि-'पर्वत में अग्नि है' और अग्नि को जाना, तो यह ज्ञान सुनने से उत्पन्न हुआ, अतः प्रत्यक्ष नहीं है, परोक्ष है। अथवा किसी स्थान पर पढ़ा कि 'पर्वत की गुफा में आग लग गई' इस प्रकार अग्नि को जाना, तो यह ज्ञान पढ़ने से हुआ है, अतएव प्रत्यक्ष नहीं है-परोक्ष है। अथवा पर्वत में धुआं उठ रहा था, उसे देखकर अनुमान हुआ कि-'धुआँ अग्नि के होने पर ही होता है, यहाँ धुआँ है, अतएव यहाँ अग्नि होनी चाहिए'। इस प्रकार यदि अग्नि को जाना, तो वह ज्ञान अनुमान से हुआ है। अतः प्रत्यक्ष नहीं, परोक्ष है।
भेद - इंद्रिय प्रत्यक्ष के पाँच भेद हैं। वे इस प्रकार हैं - १. श्रोत्र इंद्रिय, प्रत्यक्ष-अपने कान से सुनकर शब्द जानना। २. चक्षु इंद्रिय प्रत्यक्ष-अपनी आँख से देखकर रूप जानना। ३. घ्राण इंद्रिय प्रत्यक्ष-अपनी नाक से सँघकर गन्ध जानना। ४. जिह्वा इंद्रिय प्रत्यक्ष-अपनी जीभ से चखकर स्वाद जानना। .५. स्पर्शन इंद्रिय प्रत्यक्ष-अपनी स्पर्शन इंद्रिय से छू कर स्पर्श जानना।
अपेक्षा - शरीर में जो श्रोत्र आदि पाँच द्रव्य इंद्रियाँ दिखाई देती हैं, जिनकी सहायता से आत्मा शब्द आदि का ज्ञान करती है, परमार्थ से-वास्तव में वे इंद्रियाँ जीव की अपनी नहीं हैं, परन्तु पर हैं, क्योंकि वे जीव से विरुद्ध अजीव पुद्गल द्रव्यों से निर्मित हैं। अतएव आत्मा जो इन द्रव्य इंद्रियों की सहायता से शब्दादि को जानता है, वह परमार्थ से प्रत्यक्ष नहीं है मात्र स्वतः जन्य ज्ञान नहीं है। परन्तु व्यवहार में कर्म संयोग के कारण आत्मा के साथ सम्बन्ध श्रोत्रादि इंद्रियाँ, 'पर' होते हुए भी 'स्व' मानी जाती है। अतएव उनकी सहायता से होने वाला ज्ञान, व्यवहार में 'प्रत्यक्ष' माना जाता है। उस व्यवहार नय का ज्ञान करने के लिए शास्त्रकार ने यहाँ इंद्रियजन्य ज्ञान को 'प्रत्यक्ष' कह दिया है। आगे परोक्ष वर्णन में परमार्थनय का ज्ञान कराते हुए शास्त्रकार इन्द्रियजन्य ज्ञान को 'परोक्ष' बतलाएंगे। - विशेष - श्रोत्र आदि इंद्रियों के दो प्रकार हैं - १. द्रव्य इंद्रिय और २. भाव इंद्रिय।
१. द्रव्य इंद्रिय के दो भेद हैं-(१) निवृत्ति-द्रव्य-इंद्रिय और (२) उपकरण-द्रव्य-इन्द्रिय। शुभ नाम-कर्म के द्वारा निर्मित पुद्गल द्रव्य की कर्ण-पर्पटी आदि बाह्य और कर्णपट आदि आभ्यन्तर पौद्गलिक रचना विशेष को 'निर्वृत्ति-द्रव्य-इंद्रिय' कहते हैं तथा शुभ नाम कर्म के द्वारा निर्मित
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