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नन्दी सूत्र
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पुद्गल द्रव्य की कर्णपट आदि आभ्यन्तर पौद्गलिक रचना विशेष, परिमार्जित दर्पण के समान अत्यन्त स्वच्छ, वज्र के समान अत्यन्त सारभूत और खड्ग धार के समान अत्यन्त शक्तिशाली पुद्गल स्कंध विशेष को 'उपकरण-द्रव्य-इंद्रिय' कहते हैं। इनके नष्ट हो जाने पर भाव इन्द्रिय अपने विषय को जान नहीं सकती।
२. भाव इन्द्रिय के दो भेद हैं-(१) लब्धि भाव इन्द्रिय और (२) उपयोग भाव इन्द्रिय। (१) मति-श्रुत ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न, उपकरण-द्रव्य-इंद्रिय की सहायता से, विषय को ग्रहण कर जानने वाली आत्मा की ज्ञान शक्ति विशेष को 'लब्धि भाव इन्द्रिय' कहते हैं। तथा (२) मति-श्रुत ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न, उपकरण द्रव्य इंद्रिय की सहायता से विषय को ग्रहण कर जानने वाली आत्मा की ज्ञान शक्ति विशेष के व्यापार को 'उपयोग भाव इंद्रिय' कहते हैं। आत्मा की मन्द विकसित चेतना की अवस्था विशेष ही भाव इन्द्रिय है।
अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष से किं तं णोइंदियपच्चक्खं? णोइंदियपच्चक्खं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा१. ओहिणाणपच्चक्खं २. मणपज्जवणाणपच्चक्खं ३. केवलणाणपच्चक्खं ॥५॥
प्रश्न - अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष क्या है?
उत्तर - अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष के तीन भेद हैं - १. अवधिज्ञान प्रत्यक्ष २. मनःपर्यवज्ञान प्रत्यक्ष और ३. केवलज्ञान प्रत्यक्ष।
विवेचन - किसी से सुने बिना, कहीं पढ़े बिना, किसी चिह्न संकेत आदि से अनुमान किये बिना और यहाँ तक कि अपनी इन्द्रियों की सहायता के बिना ही मात्र ज्ञान आत्मा से पदार्थ विशेष को जानना 'अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष' है। ___जैसे-सूर्य उदय को मात्र आत्मा से जानना कि सूर्य उदय हो गया है, अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष है। यदि किसी से सुना कि 'सूर्य उदय हो गया' अथवा कहीं पढ़ा कि-'सूर्य उदय हो गया है' और उससे सूर्योदय जाना, तो वह 'परोक्ष' है। अथवा सूर्य की किरणों को देखकर उसके अनुमान से सूर्योदय को जाना, तो वह भी परोक्ष है। यहाँ तक कि अपनी आँखों से सूर्योदय को जानना भी परोक्ष है। परन्तु मात्र ज्ञान आत्मा से सूर्योदय जाना गया, तो वही पारमार्थिक प्रत्यक्ष है।
अपेक्षा - परमार्थतः प्रत्येक की अपनी आत्मा ही अपनी है, शेष सब परायी वस्तुएं हैं। अतएव अपनी आत्मा से होने वाला ज्ञान ही स्वतःजन्य ज्ञान है और वही परमार्थ से प्रत्यक्ष हैबिना सहायता से होने वाला ज्ञान है।
अब जिज्ञास. अवधिज्ञान के स्वरूप को विस्तार से जानने के लिए पूछता है;.
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