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नन्दी
सूत्र
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जैसे अवधि एवं मनःपर्याय प्रत्यक्ष है, वैसे ही केवलज्ञान भी प्रत्यक्ष है, इत्यादि कारणों से अवधि और मनःपर्याय के साथ केवलज्ञान रक्खा गया है।
__ मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्याय ज्ञान क्षायोपशमिक होते हैं, पर केवलज्ञान क्षायिक होता है। मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्याय ज्ञान, प्रतिपाति भी होते हैं, पर केवलज्ञान नियमेन अप्रतिपाति होता है। मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्याय ज्ञान पहले होते हैं और केवलज्ञान सबसे अन्त में होता है। मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय ज्ञान, असमस्त (अधूरे) पर्याय जानते हैं, किन्तु केवलज्ञान तो समस्त पर्यायों को प्रत्यक्ष जानता है। इत्यादि कारणों से केवलज्ञान को सबसे अन्त में उच्च स्थान दिया है।
इन्द्रिय प्रत्यक्ष अब सूत्रकार इन पाँचों ज्ञानों को संक्षेप में दो भेदों में विभक्त करते हैं- . तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-१ पच्चक्खं च २ परोक्खं च॥ सूत्र २॥
अर्थ - वह पाँच प्रकार का ज्ञान, संक्षेप से दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है१. प्रत्यक्ष-बिना सहायता जानना-'प्रत्यक्ष' है। २. परोक्ष-सहायता से जानना-'परोक्ष' है।
से किं तं पच्चक्खं? पच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-१. इंदियपच्चक्खं २. णोइंदियपच्चक्खं च॥ सूत्र ३॥
अर्थ - प्रश्न - वह प्रत्यक्ष क्या है? उत्तर - प्रत्यक्ष दो प्रकार का है। यथा-१. इन्द्रिय प्रत्यक्ष और २. नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष।
विवेचन - १. किसी भी अन्य निमित्त की सहायता के बिना स्वतः निजी शक्ति से जानना-'प्रत्यक्ष' कहलाता है।
२. भेद-(अक्ष के दो अर्थ हैं, १. इन्द्रिय और २. अनिन्द्रिय आत्मा, अतएव) प्रत्यक्ष के दो भेद हैं। वे इस प्रकार हैं
(१) इन्द्रिय प्रत्यक्ष-अन्य की सहायता के बिना स्व इन्द्रिय से जानना-'इन्द्रिय प्रत्यक्ष' है। (२) अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष-अन्य की सहायता के बिना, स्व आत्मा से जानना-'अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष' है।
से किं तं इंदियपच्चक्खं? इंदियपच्चक्खं पंचविहं पण्णत्तं, तं जहा१. सोइंदियपच्चक्खं २. चक्खिंदियपच्चक्खं ३. घाणिंदियपच्चक्खं ४. जिभिंदियपच्चक्खं ५. फासिंदियपच्चक्खं। से त्तं इंदियपच्चक्खं ।। सूत्र ४॥
अर्थ - प्रश्न - वह इन्द्रिय प्रत्यक्ष क्या है ?
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