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नन्दी सूत्र ।
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करता २. यदि द्वार खुले हों, तो उस द्वार से जो प्रकाश प्रवेश करता है, वह भिन्न प्रकार का होता है। ३. यदि खिड़की खुली हो, तो उस खिड़की से जो प्रकाश प्रवेश करता है, वह भिन्न प्रकार का होता है। ४. जाली से जो प्रकाश प्रवेश करता है, वह भिन्न प्रकार का होता है और ५. कपड़े की यवनिका से जो प्रकाश प्रवेश करता है, वह भिन्न प्रकार का होता है। क्योंकि (१) द्वार (२) खिड़की (३) जाली और (४) पर्दा, सूर्य के उस मेघावृत्त (५) मन्द प्रकाश के मेघ आवरण में और इन आवरणों में रहे सूर्य प्रकाश के मार्गों में भिन्नता है। इस प्रकार प्रकाश के आवरणों में और उन आवरणों में रहे छिद्रों के भेद के कारण से, सूर्य के उस मन्द प्रकाश में भी आवरणजन्य भेद बन जाते हैं।
वैसे ही आत्मा के ज्ञान में स्वभाव से कोई भेद नहीं है। १. जब आत्मा, ज्ञानावरण से सर्वथा रहित हो जाती है, तब वह समान रूप से सर्व क्षेत्र में रहे हुए सभी पदार्थों को जानती है। उसका यह ज्ञान 'केवलज्ञान' कहलाता है। किन्तु उसके ऊपर केवलज्ञानावरण कर्म आ जाता है, उससे उसका केवलज्ञान ढंक जाता है। परन्तु ज्ञान सर्वथा नहीं ढंकता। मन्द ज्ञान अवश्य रहता है। वह मन्द ज्ञान भी एकसा नहीं होता। २. मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जो मतिज्ञान रूप आत्मा में मन्द ज्ञान प्रकट होता है, वह भिन्न प्रकार का होता है। ३. श्रुतज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जो श्रुत ज्ञान रूप आत्मा में मन्द ज्ञान प्रकट होता है, वह भिन्न प्रकार का होता है। ४. अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जो अवधिज्ञानरूप आत्मा में मन्द ज्ञान प्रकट होता है, वह भिन्न प्रकार का होता है तथा ५. मनःपर्याय ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जो मनःपर्यव ज्ञान रूप आत्मा में मन्द ज्ञान प्रकट होता है, वह भिन्न प्रकार का होता है। क्योंकि १. मतिज्ञानावरण २. श्रुतज्ञानावरण ३. अवधिज्ञानावरण और ४. मनःपर्याय ज्ञानावरण, इन चारों के उस मन्द ज्ञान के आवरणों में और इन चारों आवरणों के क्षयोपशमों में भिन्नता है। इस प्रकार मन्द ज्ञान के इन चारों आवरणों में और उन आवरणों के क्षयोपशमों में भेद के कारण ज्ञान के शेष चार भेद वैभाविक बनते हैं।
इस प्रकार ज्ञान के पाँच भेद बनने का कारण आवरण का अभाव, आवरणों की विचित्रता और क्षयोपशम की विचित्रता है।
क्रम का कारण - १. जो मतिज्ञान का स्वामी है, वही श्रुतज्ञान का भी स्वामी है, २. मति ज्ञान भी इन्द्रिय और मन के निमित्त से होता है, ३. मतिज्ञान से भी छहों द्रव्य जाने जाते हैं और श्रुतज्ञान से भी छहों द्रव्य जाने जाते हैं, ४. मतिज्ञान भी परोक्ष है और श्रुतज्ञान भी परोक्ष है। इस प्रकार (१) स्वामी, (२) निमित्त, (३) विषय, (४) परोक्षत्व आदि की समानता के कारण मतिज्ञान और श्रुतज्ञान साथ में रखे गये हैं।
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