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नन्दी सूत्र
विवेचन 'भव' जन्म को कहते हैं तथा 'प्रत्यय' कारण को कहते हैं। जो अवधिज्ञान, जन्म
के कारण उत्पन्न हो, उसे 'भव - प्रत्यय' अवधिज्ञान कहते हैं ।
अपेक्षा - अवधिज्ञान जो उत्पन्न होता है, वह परमार्थ से अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम के कारण ही उत्पन्न होता है, भव के कारण नहीं । परन्तु जैसे-पक्षियों को आकाश में उड़ने की. शक्ति, पक्षी - जन्म में अवश्य प्राप्त होती है, वैसे ही देवों को देव भव में और नारको को नारक भव में अवधिज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम अवश्य होता ही है। इसलिए देवो को और नारकों को जो अवधिज्ञान या अज्ञान (विभंग ज्ञान) उत्पन्न होता है, उसे उपचार नय से 'भवप्रत्यय' कहते हैं । से किं तं खाओवसमियं ? खाओवसमियं दुण्हं, तं जहा- मणूसाण य पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य ।
प्रश्न - वह क्षायोपशमिक अवधिज्ञान क्या है ?
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उत्तर - क्षायोपशमिक अवधिज्ञान, मनुष्य और तिर्यंच योनि के पंचेन्द्रिय- इन दो को होता है। विवेचन - 'क्षय' का अर्थ 'नाश' है, 'उपशम' का अर्थ दबना है, 'प्रत्यय' कारण को कहते हैं। अतएव जो अवधिज्ञान, अपने को ढकने वाले अवधिज्ञानावरणीय कर्म-दलिकों के क्षय तथा उपशम के कारण उत्पन्न होता है, उसे 'क्षायोपशमिक' - क्षयोपशम प्रत्यय, अवधिज्ञान कहते हैं ।
स्वामी - क्षायोपशमिक अवधिज्ञान - १. मनुष्यों को संख्येय वर्ष की आयुष्य वाले, कर्म-भूमि के कुछ गर्भज मनुष्य, मनुष्यणियों और नपुंसकों को और २. पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों को पर्याप्त संख्येय वर्ष की आयुष्य वाले कर्म भूमि के कुछ गर्भज तिर्यंच योनि के पुरुषों को, स्त्रियों को और नपुंसकों को होता है।
अपेक्षा - देवों और नैरयिकों को होने वाला भवप्रत्यय अवधिज्ञान तथा मनुष्यों और तिर्यंचों को होने वाला क्षयोपशम प्रत्यय अवधिज्ञान, दोनों परमार्थ में क्षायोपशमिक ही हैं। अतएव दोनों एक समान हैं। परन्तु देवों और नारकों को अवधिज्ञान अवश्य होता ही है, किंतु मनुष्यों और तिर्यंचों को अवश्य नहीं होता। इस कारण देवों और नारकों के भवप्रत्यय अवधिज्ञान से मनुष्यों और तिर्यंचों का अवधिज्ञान या अज्ञान भिन्न माना गया है। 1
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अब सूत्रकार स्वयं ' क्षायोपशमिक' अवधिज्ञान की उत्पत्ति का कारण बतलाते हैं।
को हेऊ खाओवसमियं ? खाओवसमियं तयावरणिज्जाणं कम्माणं उदिण्णाणं खणं अणुदिण्णाण उवसमेणं ओहिणाणं समुपज्जइ ॥ सू० ८ ॥
अर्थ - प्रश्न- क्षायोपशमिक अवधिज्ञान की उत्पत्ति का हेतु क्या है ?
उत्तर - अवधिज्ञान को ढकने वाले तदावरणीय ( अवधि ज्ञानावरणीय) कर्म, जो उदय में
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